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इक्षाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है

सुख के झरने देख पराए दुख को लिए निकलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है

मर्यादा में घोर निराशा
बाँध तोड़ती अहम पिपाशा
रस्मों और रिवाजों के पुल  
लगते हैं बस एक तमाशा  

तीव्र वेग से बहती है कब शिव से कहो सम्हलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है

अंतरमन का दीप बुझाती
प्रतिस्पर्धा को सुलगाती
होड़ लिए आगे बढ़ने की
लक्ष्य रोज ये नये बनाती

सुधा धैर्य की छोड़ विकल चिंता का गरल निगलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है

मतलब की बगिया भाती है
मतलब के गाने गाती है
दूर करे अपनों से सारे
लिए लालसा इठलाती है   

कर्तव्यों के पुष्प कभी वो निर्दयी बने कुचलती है
इच्छाओं की अविरल नदिया दिल में सदा मचलती है

--संदीप पटेल "दीप"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2013 at 12:52pm
आदरणीय सौरभ सर जी ..................इस तरह तो आप अबोध को निराश कर रहे हैं
स्नेह बनाए रखिए

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 12, 2013 at 8:42pm

मैं ने सोचा, समझा पा रहा हूँ.  मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ.

सादर

Comment by vijay nikore on July 12, 2013 at 5:09pm

इस सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय।

विजय निकोर

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2013 at 1:23pm

आदरणीय सौरभ सर जी मैं भी कहाँ भोलेबबात्व की बात समझ के आपको यह अर्थ बता रहा था
मैं तो बस शिव के एक सरल से अर्थ की ही बात की थी
शिवत्व और शिव दोनों अपने आप मैं जटिल हैं और यथा सरल भी जैसे मैने लिखा है

शिवत्व पर प्रश्नचिन्ह कैसे जबकि इच्छाएँ इतनी प्रबल होती हैं के स्वयं भस्मासुर बन जाती हैं फिर उन्हें परिणाम से कोई लेना देना नहीं होता है ..............
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 12, 2013 at 12:42pm

//शिव अर्थात परम सत्य के लिए कहा है//

जी.  

मैं भी उनके भोलाबाबात्व को इंगित नहीं कर रहा था. ख़ैर. ..

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2013 at 11:47am
आदरणीय सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपका बहुत बहुत आभार इस सराहना हेतु स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
शिव अर्थात परम सत्य के लिए कहा है
आदरणीय संपादक महोदय जी से अनुरोध है के इच्छाओं जो की सही शब्द है करने की कृपा करें
आदरणीय केवल प्रसाद जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 9:21pm

इच्छाओं की अविरल नदिया यदि साध ली जाय तो गठन, उच्छृंखल बहती चली तो  विनाश. 

किन्तु,  पंक्ति  तीव्र वेग से बहती है कब शिव से कहो सम्हलती है   शिवत्व की अवधारणा पर ही प्रश्नचिह्न है. 

बहरहाल,  सुन्दर प्रयास के लिए बधाई स्वीकारें, आदरणीय.

हाँ, यदि चाहें तो ऐडमिन से इक्षा शब्द की अक्षरी सुधरवा लें.  ऐसा उचित भी होगा.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 11, 2013 at 8:37pm

आ0 संदीप भाई जी, वाह! अतिसुन्दर प्रस्तुति।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2013 at 7:40pm
aap sabhi kaa bahut bahut shukriya
mobile se comment kar raha hun isiliye kshama chahta pc kharab ho gaya hai
asha hai aap meri bhawanaon ko samjhenge
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2013 at 7:35pm
mere liye ye prashn bahut kathin hai sir ji
ichcha ko iksha likh diya hai maine shayad
kshama chahta hun

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