हो जाती कुदरत खफा, देती मिटा वजूद ।
उलथ उत्तराखंड ज्यों, होय नेस्तनाबूद ।।
क्या मूरख मानव चेता ।।
विस्फोटों से तोड़ते, ऊंचे खड़े पहाड़ ।
हाड़ कुचलते शैलखंड, अपना मौका ताड़ ।।
ऐसे ही बदला लेता ।।
सरिता-झरना का करे, मनुज मार्ग अवरुद्ध ।
कुछ वर्षों में ही मगर, कर दे वर्षा शुद्ध ।।
जीव-जंतु घर बार समेता ॥
विजय होय बहु-गुणों से, किन्तु चेतना सून।
मार जाय लाखों मनुज, ज्यों तेरह का जून ॥
धिक्कारो ऐसा नेता ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सटीक पुच्छल दोहों के लिये हार्दिक शुभकामनायें..........
सुन्दर रचना.
//तेरह का जून से तातपर्य सन तेरह का जून है//
अब ये कैसी कहन है भाई जी? बिना किसी उद्धरण या सटीक इंगित ऐसा कोई विन्दु कूट ही नहीं महाविकट भी होता है. ऐसा प्रयास ... . खैर.
शुभम्
तेरह का जून से तातपर्य
सन तेरह का जून है आदरणीय-
सादर आभार
पुछल्ले वाले दोहों की बयार अच्छी बहायी आपने, आदरणीय रविकर भाईजी.
बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है और पठनीय रचना हुई है. ढेर सारी बधाई..
तेरह जून को सत्तरह जून क्यों न किया जाय ? तेरह से कुछ विशेष है क्या ? सत्तरह जून की विभीषिका से तो सभी परिचित हुए हैं.
सादर
सुन्दर रचना.......बधाई.....
बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई.......................................
हो जाती कुदरत खफा, देती मिटा वजूद ।
उलथ उत्तराखंड ज्यों, होय नेस्तनाबूद ।।
क्या मूरख मानव चेता ।।...............सच है कोई समझे या न समझे ,प्रकृति अपना बदला ले ही लेती है.
वाह आदरणीय रविकर जी बहुत ही सुन्दर रचना //हार्दिक बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online