बिपदा बढ़ती बहु-गुणा, बा-शिंदे बेहाल |
बस-बेबस बहते बहे, बज-बंशी भूपाल |
बज बंशी भूपाल, बहर बंदिशें सुरीली |
मनमोहन मदमस्त, मगन मीरा शर्मीली |
चले अचल छल-चाल, भयंकर नदी बिगडती |
चारो तरफ बवाल, हमारी बिपदा बढ़ती ||
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रविकर सर .. बहुत ही सुंदर कुंडलियाँ .. शब्दों का संयोजन लाजवाब ... बहुत -२ बधाई आपको
वाह आदरणीय बहुत सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
चले अचल छल-चाल, भयंकर नदी बिगडती |
चारो तरफ बवाल, हमारी बिपदा बढ़ती |........यही तो विडम्बना है रविकर जी. जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो .....क्या करें?
वाह ! रविकर भाई शब्द संयोजन और संधि-विच्छेद कर छंद रचना में आपका मुकाबला नहीं | हार्दिक बधाई
बहुगुणा बहु-गुणित हुए, चर्चा में मगरूर
बढती विपदा दे रही, जनप्रियता भरपूर
आ0 रविकर भाई जी, बहुत ही शानदार, शालीन और शर्मीली फटकार के साथ-ही साथ सिमटती सांझ की दुर्दशा का सुन्दर चित्रण। इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। सादर,
अति सुंदर ..........
बहुत बहुत खूब सुंदर छंद की रचना की आपने आदरणीय कुण्डलिया सम्राट रविकर जी!
सच मुच आपकी कलम में जादू है,, नमन !!
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