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वो हँसी गुल संवर रही होगी

वो हँसी गुल संवर रही होगी

चांदनी सी बिखर रही होगी

सारी दुनिया हो बेखबर चाहे

चातकों की नजर रही होगी

जब कमानी वदन किया होगा

थमी-थमी ये सहर रही होगी

रुख हवा ने उधर किया होगा

मलिका-ए-हुस्न वो जिधर होगी

नादाँ दिल मेरा बस यही सोचे

आज की शाम वो किधर होगी

उसके दीदार हो गए जी भर

ये खुशी सोचो किस कदर होगी

“आशु” हर सिम्त सजा फूलों से

चुन रखी कोई तो डगर होगी

(मौलिक व अप्रकाशित)

डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१

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Comment by Meena Pathak on June 20, 2013 at 5:12pm

वो हँसी गुल संवर रही होगी

चांदनी सी बिखर रही होगी

सारी दुनिया हो बेखबर चाहे

चातकों की नजर रही होगी................बहुत सुन्दर .. बधाई आप को 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 20, 2013 at 4:58pm
बहुत सुंदर पंक्तियां..."नादां दिल मेरा बस यही सोचे, आज की शाम वो किधर होगी...उसके दीदार हो गए जी भर, ये खुशी सोचो किस कदर होगी '...आदरणीय ..मिश्र जी शुभकामनाऐं
Comment by coontee mukerji on June 20, 2013 at 2:20pm

वो हँसी गुल संवर रही होगी

चांदनी सी बिखर रही होगी

सारी दुनिया हो बेखबर चाहे

चातकों की नजर रही होगी............................... बहुत सुन्दर .

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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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