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वक्त जो हम पर भारी है - वीनस

छोटी बहर पर ग़ज़ल का एक प्रयास  .....

वक्त जो हम पर भारी है 
अपनी भी तय्यारी है 

पूरा कारोबारी है 
ये अमला सरकारी है 

.

प्रजातंत्र के ढांचे में 

हर कोई दरबारी है 

तय्यारी है हमलों की 

अम्न का नाटक ज़ारी है 

सच को कैसे सच कह दें  
जान हमें भी प्यारी है 


खुद को खतरा है खुद से 

ये कैसी खुद्दारी है 

साम्यवाद के नारों पर 

भारी जिम्मेदारी है 



वीनस केसरी 
मौलिक व अप्रकाशित 

फैलुन फैलुन फैलुन फ़ा 

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Comment by Sumit Naithani on June 20, 2013 at 8:51pm

खुद को खतरा है खुद से 

ये कैसी खुद्दारी है
..... सुंदर अभिव्यक्ति

Comment by वेदिका on June 20, 2013 at 8:26pm

बहुत दमदार गजल ...

वक्त जो हम पर भारी है 
अपनी भी तय्यारी है  

 

दिली दाद स्वीकारें वीनस जी! 

Comment by Kundan Kumar Singh on June 20, 2013 at 7:46pm

सच को कैसे सच कह दें 
जान हमें भी प्यारी है

बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति ।

Comment by Meena Pathak on June 20, 2013 at 5:15pm

सच को कैसे सच कह दें  
जान हमें भी प्यारी है 

 .............बहुत सुन्दर ..बधाई स्वीकारें 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 20, 2013 at 4:23pm
आदरणीय..वीनस जी, बहुत खूब कहा आपने...'खुद को खतरा है खुद से, ये कैसी खुद्दारी है '...वाह आ. वीनस जी वाह! ...शुभकामनाऐं
Comment by कल्पना रामानी on June 20, 2013 at 1:58pm

सच को कैसे सच कह दें  
जान हमें भी प्यारी है 


खुद को खतरा है खुद से 

ये किसी खुद्दारी है ......सच ही कहा है आपने वीनस जी,

 

'किसी' शब्द में शायद  टंकण की त्रुटि हो गई है

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