For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वक्त जो हम पर भारी है - वीनस

छोटी बहर पर ग़ज़ल का एक प्रयास  .....

वक्त जो हम पर भारी है 
अपनी भी तय्यारी है 

पूरा कारोबारी है 
ये अमला सरकारी है 

.

प्रजातंत्र के ढांचे में 

हर कोई दरबारी है 

तय्यारी है हमलों की 

अम्न का नाटक ज़ारी है 

सच को कैसे सच कह दें  
जान हमें भी प्यारी है 


खुद को खतरा है खुद से 

ये कैसी खुद्दारी है 

साम्यवाद के नारों पर 

भारी जिम्मेदारी है 



वीनस केसरी 
मौलिक व अप्रकाशित 

फैलुन फैलुन फैलुन फ़ा 

Views: 834

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on June 24, 2013 at 1:24am
Comment by वीनस केसरी on June 24, 2013 at 1:23am
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 23, 2013 at 6:22pm

वीनस जी, बहुत ही सुन्दर भाव| मज़ा आया पढ़ कर| "सच को कैसे सच कह दें - जान हमें भी प्यारी है"... फिर भी सच यह है कि भावों को एक कवि से बेहतर कोई नहीं समझ सकता| बधाई आपको|

Comment by mrs manjari pandey on June 23, 2013 at 4:40pm

       आदरणीय वीनस जी ,बखूबी सामायिक सोच को  चन्द  पंक्तियों  में बयाँ  किया है 

Comment by वीनस केसरी on June 22, 2013 at 11:42pm

धन्यवाद श्याम नारायण वर्मा जी .....

Comment by वीनस केसरी on June 22, 2013 at 11:41pm

जी ... बृजेश जी फिर तो मैंने सही ही समझा था ....

:)))))))))))))))))

Comment by वीनस केसरी on June 22, 2013 at 11:41pm

महिमा श्री जी रचना के अनुमोदन के लिए आपका आभारी हूँ

Comment by Shyam Narain Verma on June 22, 2013 at 12:59pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by बृजेश नीरज on June 22, 2013 at 8:40am

वीनस भाई मैंने तारीफ ही की है। :))))))))

Comment by MAHIMA SHREE on June 22, 2013 at 12:28am

प्रजातंत्र के ढांचे में 

हर कोई दरबारी है...

 

साम्यवाद के नारों पर 

भारी जिम्मेदारी है

 

वाह !!!! बहुत-२ ही करारा कटाछ करती गजल ..सब शेर अपने आप में जबरदस्त हैं .. घाव करें गंभीर वाली बात ... बहुत-२ बधाई आपको आदरणीय वीनस जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service