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कभी हम यूँ भी अकेले होंगे ,

भीड़ होगी ,तन्हाई के मेले होंगे ,

याद आएगा एक वह आँगन 

जिसमे हम मौज से खेले होंगे !
*
आंधियां,तूफ़ान हों ,ये चाहते हैं हम,

दुश्वारियों को खूब ही सराहते हैं हम ,

हम तो चलेंगे रोज की रफ़्तार से यारो,
दूर है मंजिल तो क्या निबाहते हैं हम !

*

ज़िंदगी किताब सी ,आइये पढ़ें ,

लिखी बे-हिसाब सी ,आइये पढ़ें ,

पाठ सारे सवालों के हैं फिर भी 

लगती जवाब सी ,आइये पढ़ें  !
*
पढ़ लीजिए चेहरों को ज़रा देख-भाल कर ,

वंदन -प्रशस्ति कर रहे कीचड़ उछालकर ,

क्या खूब ये नुमाइंदे ,क्या खूब इनके ढंग 

हमने जिन्हें चुना था बहुत ही सम्हाल कर !

*

राजनीति तेरे क्या खूब हैं नज़ारे ,

आज मुंह फेर चले ,कल थे हमारे ,

बात नही मानी ,तो हम चले जानी 
उगा नया सूरज  प्रणाम करो प्यारे !

________________प्रो.विश्वम्भर शुक्ल ,लखनऊ 

(मौलिक और अप्रकाशित )

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Comment by वेदिका on June 20, 2013 at 9:18pm

पढ़ लीजिए चेहरों को ज़रा देख-भाल कर ,

वंदन -प्रशस्ति कर रहे कीचड़ उछालकर ,

क्या खूब ये नुमाइंदे ,क्या खूब इनके ढंग 

हमने जिन्हें चुना था बहुत ही सम्हाल कर !

 

सुंदर मुक्तक ...ढेंरो बधाई लीजिये 

Comment by Meena Pathak on June 20, 2013 at 5:01pm

बहुत सुन्दर मुक्तक .... बधाई स्वीकारें 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 20, 2013 at 2:52pm

मुक्तक तनाव से मुक्त कर गए ...आँखों से उतरे दिल में घर कर गए ...सादर बधाई  

Comment by vijay nikore on June 20, 2013 at 12:05pm

मुक्तक अच्छे लगे। बधाई।

सा्दर,

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on June 20, 2013 at 8:44am

बहुत ही सुन्दर मुक्तक! मेरी ढेरों बधाई स्वीकारें!

Comment by MAHIMA SHREE on June 19, 2013 at 11:09pm

ज़िंदगी किताब सी ,आइये पढ़ें ,

लिखी बे-हिसाब सी ,आइये पढ़ें ,

पाठ सारे सवालों के हैं फिर भी 

लगती जवाब सी ,आइये पढ़ें  ... सुंदर अभिवयक्ति आदरणीय .. बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on June 19, 2013 at 12:09pm
" पढ़ लीजिए चेहरों को ज़रा देख-भाल कर ,
वंदन -प्रशस्ति कर रहे कीचड़ उछालकर ,
क्या खूब ये नुमाइंदे ,क्या खूब इनके ढंग
हमने जिन्हें चुना था बहुत ही सम्हाल कर !"
- भारत की आत्मा पर होते आघातों का स्पष्ट चित्रण , पढते लगा कि मेरे मन की है और कविता की आख़िरी दो पंक्तियाँ तो मानो एक दिक्दर्शन ही है .आपकी यह कविता आज के समय का तकाजा है.बधाई विश्वम्भरजी .
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 18, 2013 at 6:46pm

आ0 विश्वम्भर सर जी,  बहुत ही सुन्दर मुक्तक।  बधाई स्वीकारें।  सादर, 

Comment by Pragya Srivastava on June 18, 2013 at 2:41pm

मन को छू गए............................................बहुत बढ़िया

Comment by Shyam Narain Verma on June 18, 2013 at 12:40pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ..........................

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