For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकान्त/ अपना गांव

आज

बहुत दिनों बाद आया गांव

अपना गांव

जहां हुआ करते थे

महुआ, कटहल, आम

एक बाग भी।

खेलते थे गुल्ली डंडा

कभी कभी क्रिकेट भी।

अब वहां बाग नहीं है

उग आए हैं मकान।

 

एक नदी बहती थी

शांत, निर्मल।

ऊंचे कगारों पर

ढेर सारे जामुन के पेड़।

कगारों से फिसलते

हम पहुंच जाते किनारे

नदी में नहाते।

अब नदी सूख गयी

सिर्फ शेष रेत।

 

हथपुइया रोटी बनाती थीं

बड़ी अम्मा

नून, तेल चुपड़कर।

वह सोंधा स्वाद

अब भी है मुंह में।

लेकिन अब अम्मा नहीं।

 

अब कुछ भी नहीं

आम, जामुन, कटहल

अम्मा, बाग

कुछ नहीं।

सिर्फ हैं

ईंटों के मकान

सरपत और बबूल

ढेर सारे।

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 870

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2013 at 10:07pm

ओह.. . !   शिल्प में ऐसी नम्रता और कहन में इतनी तल्ख़ी !.. आह, तल्ख़ी भी नहीं, कचोटपन का इंतिहा.. .

जिन हालात को आपने अपनी कलम से गूँधा है उस हालात के नज़ारे अब जोड़ते नहीं तोड़ते हैं, भाईजी. बस ज़िन्दा बचे लोगों के सपनों में है वो गाँव. अगली पाढ़ी सभवतः इन सपनों को भी न जी पायेगी.

मन भर आया, बृजेश भाई. आँखों की कोर नम हो गयी.

आपकी इस संवेदनापूरित रचना को मैं अपने एक शब्द-चित्र का सम्मान देता हूँ, विश्वास है स्वीकार्य व समीचीन होगा-

मरे हुए कुएँ..
उकड़ूँ पड़े ढेंकुल..
करौन्दे की बेतरतीब झाड़ियाँ..
बाँस के निर्बीज कोठ.. . ढूह हुए महुए..
एक ओर भहराई छप्परों की बदहवास खपरैलें..
सूनी.. सूखी आँखों ताकती हैं एकटक..
एक अदद अपने की राह.. चुपचाप..
कि.. कुछ जलबूँद

और दो तुलसीपत्र जिह्वा पर रख.. त्राण दे जाए .
लगातार मर रहा है इन सबको लिए.. निश्शब्द
मेरा गाँव.

Comment by D P Mathur on June 7, 2013 at 9:59pm

आप किस्मत वाले हैं जो अपने गावंँ जा पा रहे हैं
हमने तो जन्म से इन ईंट पत्थरों के जंगल को ही अपना गावंँ देखा है।
भावनाओं से ओतप्रोत रचना के लिए धन्यवाद !

Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 6:51pm

आदरणीय राजेश जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 6:44pm

आदरणीया शालिनी जी आपका हार्दिक आभार! आपको रचना पसन्द आयी मेरा लिखना सार्थक हुआ।

Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 6:44pm

आदरणीय अमन जी आपका आभार!

Comment by वेदिका on June 7, 2013 at 6:42pm
ये तो आपका बडप्पन है आदरणीय बृजेश जी! अन्यथा लोग भावुकता की जमीं पे लिखने वालों को शब्दों का जादूगर ही समझ पाते है। 
आदर करती हूँ, आपके सानिध्य का और ओ बी ओ पर सभी सुधिजनो का!
सादर !   
Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 6:40pm

आदरणीय प्रदीप जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by राजेश 'मृदु' on June 7, 2013 at 6:07pm

छूटे गांव की व्‍यथा कथा बताती एक सुंदर रचना हेतु आपका हार्दिक आभार ।

Comment by shalini rastogi on June 7, 2013 at 6:07pm

आदरणीय बृजेश जी .. आधुनिकता के दौड़ में अपनी पहचान, परम्पराओं और अपनी ज़मीनी सच्चाई को त्यागते गाँवों की मार्मिक व्यथा का चित्रण किया है आपने .. बेहद हृदय स्पर्शी !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 5:43pm
जी, आदरणीय ब्रजेश जी, "मैं आप लोगो से अपनी भावना या विचार लिखते समय, इसलिए माफी मांग लेता हूँ कि मै वास्तविकता की जमीं से जुड़ा हूँ , शब्दों की ज्यादा जानकारी नहीं, परन्तु उनमें छुपी भावनाओ को समझने की कोशिश कर लेता हूँ ।इसलिए मै आप सभी साहित्य के जानकारों से नम्रतापूर्वक, अपना विचार रखकर माँफी भी मांग लेता हूँ । मैं बड़ा सौभाग्यशाली हूँ जो आज आप जैसे व्यक्ति ने यह कह दिया कि मैं आपकी भावनाओं को समझ गया " आपका बहुत बहुत शुक्रिया...आदरणीय ब्रजेश जी । मै इस मंच से कुछ दिनो से ही जुड़ा हूँ, क्योकि कहीं कहीं कुछ इंसान मेरी भावनाओं को भी समझ सकें....-शुभकामनाऐं आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service