For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहली बरसात में! (दोहे -जवाहर)

पुष्प वाटिका बीच मुदित, बाला मन को मोह 
सुमन पंखुरी सुघर मृदुल , श्यामा तन यूँ सोह!

पनघट पर सखिया सभी, करत किलोल ठठाहि ,
छलकत जल से गागरी, यौवन छलकत ताहि!

पुष्प बीच गूंजत अली, झन्न वीणा के तार .
तितली बलखाती चली, कली ज्यों करे श्रृंगार!

पीपल की पत्तियां भली, मधुर समीरण साथ,

देखत लोगन सुघर छवी, हिय हिलोर ले साथ.

पवन चले जब पुरवाई, ले बदरा को साथ 
मन विचलित गोरी भई, आंचल ढंके न माथ .

आदरणीय गुणीजन मैंने थोड़ा सुधार कर पुन: पोस्ट किया है, साथ ही दोहा विधान में भी इसे पोस्ट किया है कृपया गुण दोष जरूर बताएँ!

पुष्प वाटिका बीच मुदित, बाला मन को मोह
सुमन पंखुरी सुघर मृदुल , श्यामा तन यूँ सोह!


पनघट पर सखिया सभी, करत किलोल ठठाहि ,
छलकत जल से गागरी, यौवन छलकत ताहि!

पुष्प बीच अली कै गुंजन, ज्यों वीणा के तार .
तितली बलखाती चलै, कली ज्यो करे श्रृंगार!

पीपल की पत्तियां भली, मधुर समीरण साथ,
देखत छवि लागे सुघर, हिय हिलोर ले साथ.

पवन चले जब पुरवाई, ले बदरा को साथ
गोरी मन विचलित भई, आंचल ढंके न माथ .

(मौलिक व अप्रकाशित )

 -जवाहर

04 जून' 13

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 6, 2013 at 5:00pm

सभी आदरणीयों का मैं अभिनन्दन करते हुए पुन: प्रयास किया है और इसे दोहा विधान में भी डाला है, कृपया गुणदोष बताएँ आपसभी के सहयोग के लिए हार्दिक आभार!

आदरणीया महिमा जी, आदरणीय संदीप कुमार पटेल जी, संदीप वाहिद जी, अरुण शर्मा जी, राम शिरोमणि जी, श्याम नारायण जी, अशोक भाई जी, भाई जितेन्द्र जी, आबिद अली साहब! आप सबका बहुत बहुत आभार!

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 12:32am

नमस्कार जवाहर सर...

सुंदर दोहे !! बहुत-२ बधाई आपको

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 9:29pm

बहुत सुन्दर प्रयास है आदरणीय बधाई हो 

विद्वजनों के कहे को संज्ञान कीजिये सादर 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 8:50pm

वाह जवाहर भाई जी! क्या ख़ूब दोहे प्रस्तुत किये आपने! बिलकुल रवायती अंदाज़ में! भाव और चित्रण दोनों ही नायाब हैं! शिल्प थोड़ी और कसावट की मांग कर रहा है! जैसा नीचे विद्वजनों ने इंगित किया है! बहरहाल बधाई स्वीकार करें! सादर,

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 5, 2013 at 5:22pm

अरे अनुज तनिक देख लो लीजिये दोहे जवाहर सिंह जी ने लिखे हैं मैंने नहीं.

Comment by ram shiromani pathak on June 5, 2013 at 5:21pm

 सुन्दर दोहे///हार्दिक बधाई(बड़े भाई अरुण जी और आदरणीय अशोक जी से सहमत हूँ !)

Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2013 at 12:24pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by अरुन 'अनन्त' on June 5, 2013 at 12:16pm

आदरणीय जवाहर जी सुन्दर दोहे रचे हैं शब्द और भाव अत्यंत सुन्दर है परन्तु कसावट की कमी खल रही है, साथ ही साथ मात्रा गणना एवं जगण दोष भी नज़र आ रहा है आपके दोहों में, कृपया कर समूह में जाकर "भारतीय छंद विधान" में प्रवेश लें वहां से आप सब कुछ स्पष्ठ हो जाएगा. प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 5, 2013 at 8:54am

आदरणीय जवाहर जी भाई सादर, दोहों की बहुत सुन्दर भावमय प्रस्तुति, मगर बहुत उचित होता एक बार मात्रा गणना जांच ली जाती.आप सुधार करें बधाई तैयार है.सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 5, 2013 at 1:36am
आदरणीय...जवाहर जी, अति सुंदर रचना "हार्दिक बधाई व शुभकामना... "

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
8 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service