For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रवि महिमा चौपाई एवं दोहों में / जवाहर

रवि महिमा
रवि की महिमा सब जग जानी, बिनू रवि संकट अधिक बखानी.
शुबह सवेरे प्रगट गगन में, फूर्ति जगावत जन मन तन में!
दूर अँधेरा भागा फिरता, सूरज नहीं किसी से डरता.
आभा इनका सब पर भारी, रोग जनित कीटन को मारी
ग्रीष्म कठिन अति जन अकुलानी, शरद ऋतू में दुर्लभ जानी
ग्रीष्महि जन सब घर छुप जावें, शरद ऋतू में बाहर आवें.
गर्मी अधिक पसीना आवे, मेघ दरस न गगन में पावे.
पावस मासहि छिप छिप जावें. बादल बीच नजर नहीं आवे.
हल्की बारिश में दिख जावें, इन्द्रधनुष अति सुन्दर भावे.
कबहू रवि घन में छिपे, कबहू प्रगटे सुदूर
लुक्का छिप्पी करत हैं, नभ से निकले नूर.
सूरज जग के त्राण हैं, पूजा करिए जरूर.
जो जन सूरज भगत हैं, तन से निकले नूर!

( मौलिक व अप्रकाशित )

- जवाहर लाल सिंह 

Views: 572

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 14, 2013 at 4:04pm

आदरणीया विजयश्री जी, सादर अभिवादन!

समर्थन हेतु आपका हार्दिक आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 14, 2013 at 4:03pm

आदरणीया कुंती जी, सादर अभिवादन!

समर्थन हेतु आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 14, 2013 at 4:02pm

आदरणीया विनीता जी, सादर अभिवादन!

समर्थन हेतु आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 14, 2013 at 4:01pm

आदरणीय श्री विजय मिश्र जी,  आपका अभार!

ओम सूर्याय नम:!

Comment by vijayashree on June 14, 2013 at 12:09pm

रवि की महिमा सब जग जानी, बिनू रवि संकट अधिक बखानी.
शुबह सवेरे प्रगट गगन में, फूर्ति जगावत जन मन तन में!
दूर अँधेरा भागा फिरता, सूरज नहीं किसी से डरता.
आभा इनका सब पर भारी, रोग जनित कीटन को मारी

 

बहुत खूब वर्णन किया है सूर्य देवता का आपने जवाहरजी /सादर  

Comment by coontee mukerji on June 14, 2013 at 12:38am

सूरज जग के त्राण हैं, पूजा करिए जरूर.
जो जन सूरज भगत हैं, तन से निकले नूर.........क्या खूब कहा है .

Comment by Vinita Shukla on June 13, 2013 at 2:59pm

आंचलिक भाषा में, सहज , सुन्दर अभिव्यक्ति. सूर्य देव की महिमा अपरम्पार है!

Comment by विजय मिश्र on June 13, 2013 at 11:54am
ॐ सूर्याय नमः ! सुंदर अभिव्यक्ति .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service