For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इश्क में हो गये है शेर सब

इश्क में हो गये है शेर सब 
शेरनी की गरज पर ढेर सब 

है बनी शायरी अब फुन्तरू 
आम से हो गये है बेर सब 

हां कलम भी कभी हथियार थी 
चुटकुला अब, समय का फेर सब 

जे छपे, वे छपे, हम रह गये 

चाटने में हुई है देर सब 

खो गये मीर, ग़ालिब, मुसहफ़ी 
लिख रहे है खुदी को जेर सब 
~अमितेष 
मौलिक व अप्रकाशित 

फुन्तुरु - मजाक 
मीर - मीर तक़ी 'मीर'

ग़ालिब - असद उल्लाह खां ग़ालिब 
मुसहफ़ी - शैख़ गुलाम हम्दानी मुसहफ़ी 

Views: 694

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 6, 2013 at 2:20pm

उर्दू शब्दों का अर्थ बताने से आपके बात हर पाठक तक पहुचती है ..और सीखने को भी मिलता है ..सादर बधाई के साथ 

Comment by अमि तेष on June 6, 2013 at 9:38am

 Abid ali mansoori jee, Shyam Narain Verma jee,  coontee mukerji jee,  संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' jee,  MAHIMA SHREE jee, Saurabh Pandey jee,  रविकर jee और  वीनस केसरी भाई  .......... आप सभी का शुक्रिया ..... सौरभ जी ..वीनस भाई मेंरे बड़े भाई जैसे है .....और मेंटर है ......उनकी हर बात मेरे लिए महत्वपूर्ण है ..... 

Comment by रविकर on June 6, 2013 at 9:03am

गजब---


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2013 at 7:39am

अरे वाह !!

अमितेष भाई जी, क्या ग़ज़ब किया है आपने.. . ::-))))

इस मासूम मग़र निहायत चुलबुले तंज़ को बचा कर रखियेगा, आगे यह जवान हो कर ग़ज़ब ढाने वाला है.. . 

दाद .. भरपूर दाद..

वीनस भाई के कहे में दम है, देखियेगा..

Comment by वीनस केसरी on June 6, 2013 at 1:19am

भाई जी अच्छी ग़ज़ल कही है और अशआर बहरो वज्न में दुरुस्त भी हैं मगर अपने जो अरकान चुना है वह लयात्मक और अनुमत्य है इस पर मुझे शंका है

अगर इसे २१२ / २१२ / २२१२ से बदल कर २१२२ / २१२२ / २१२ कर लें तो रचना विधान के अनुरूप हो जायेगी

आपकी सुविधा के लिए मतले पर एक सुझाव प्रस्तुत है देखें लयात्मकता कैसे कई गुना बढ़ गई है ....
इश्क में यू / तो हुए है शेर सब 
शेरनी की इक गरज पर ढेर सब

इश्क में यू / तो हुए है / शेर सब 
शेरनी की / इक गरज पर / ढेर सब

Comment by MAHIMA SHREE on June 6, 2013 at 12:06am

हा हा  क्या बात है अमितेष जी .. बहुत ही बढ़िया!!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on June 5, 2013 at 9:00pm

बढ़िया तन्जीदा लेखन.. बधाई हो अमितेष जी!

Comment by coontee mukerji on June 5, 2013 at 7:08pm

वाह  ! क्या अंदाज़ है . मनोरंजक ./ सादर

Comment by Shyam Narain Verma on June 5, 2013 at 12:08pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………
Comment by Abid ali mansoori on June 5, 2013 at 10:04am
वास्तविकता की झलक दिखाई देती है जनाब आपकी रचना मेँ,बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"अंतिम दो पदों में तुकांंत सुधार के साथ  _____ निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन…"
36 minutes ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी _____ निवृत सेवा से हुए अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न बैठने दें पोतियाँ माँगतीं…"
2 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी * दादा जी  के संग  तो उमंग  और   खुशियाँ  हैं, किस्से…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 162 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   देवों की है कर्म भूमि, भारत है धर्म भूमि, शिक्षा अपनी…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service