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वो मै था .कि......

..वो मै था .कि......
जो सबके साथ चलना चाहता था ,
पर ये वो थे , अपने को मेरा सहारा समझ बेठे ,
वो मै था , जो प्यार को खुदा मानता रहा ,
पर ये वो थे की मेरे प्यार मे , लालच को तलाशते रहे,
वो मै था, सबसे छोटा बना हुआ था ,
पर ये वो थे सब अपने को बड़े बना बेठे ,
एक मै था कि घर अपना न बना पाया अभी तक
पर ये वो थे सब महल सजा बेठे ,
वो मै था कि बेठा रहा इंतजार मे मौत तक ,
पर ये वो थे कि मुड़ कर भी न देखा रहे गुजर मे ,

मौलिक एवं अप्रकाशित ,

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Comment by aman kumar on June 12, 2013 at 10:36am

आपका सादर स्वागत है श्रीमान. .....सहयोग बनाये रखे !

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 11, 2013 at 11:02pm

एक मै था कि घर अपना न बना पाया अभी तक 

पर ये वो थे सब महल सजा बेठे ,

वो मै था कि बेठा रहा इंतजार मे मौत तक ,

पर ये वो थे कि मुड़ कर भी न देखा रहे गुजर मे…

प्रिय अमन जी ..सच को उकेरती हुयी सुन्दर पंक्तियाँ ...समाज काफी बदल जा रहा है ...अच्छी रचना 

जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by Ashok Kumar Raktale on June 6, 2013 at 8:57am

सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय अमन कुमार जी.

Comment by aman kumar on June 2, 2013 at 10:31am

आपका समय मिला क्रतार्थ हुआ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2013 at 9:36pm

प्रयासरत रहें भाईजी.. .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 31, 2013 at 8:35pm
"आदरणीय...अमन जी, बहुत ही उम्दा पंक्तियां .." जीवन में , रिश्तों में जो स्वार्थ जैसी भावनाऐं भी होती हैं ! ....शुभ-कामनायें
Comment by aman kumar on May 31, 2013 at 9:15am

आपका सादर स्वागत है श्रीमान. .....सहयोग बनाये रखे !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 30, 2013 at 7:23pm

वर्तमान जगत में मानव स्वभाव में स्वार्थ के बीज एक कटु सत्य है, जिन्हें उजागर किया है, बधाई 

Comment by aman kumar on May 30, 2013 at 8:14am

आपका समय मिला क्रतार्थ हुआ |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 29, 2013 at 7:39pm

ज़िंदगी की कटुता को तुलनात्मकता के साथ बाखूबी अभिव्यक्त किया है आ० अमन जी 

शुभकामनाएँ 

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