For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चांद सितारे

चुप से हैं।

रात

घनेरी छाई है।।

 

तेज घनी

दुपहरिया में

अब अंगार बरसते हैं।

तपती

बंजर धरती पर

पांव धरें

तो जलते हैं।

पेड़ की

टूटी शाख पर

इक कोंपल

मुरझाई है।।

 

चिटक गयीं

दीवारे भी

छत से

बूंद टपकती है।

जमीं

सहेजी थी मैंने

मुझसे

दूर खिसकती है।

नयनों की

परतें सूखी

दिल में

सीलन छाई है।।

 

देखो

अब आशाओं के

पंख झड़े

तन सूख गए।

कितने कितने

सपनों के

श्वास से

संग छूट गए।

बस

टूटा बिखरा सा ये

जीवन

इक भरपाई है।।

          - बृजेश नीरज

 

(मौलिक व अप्रकाषित)

Views: 964

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on July 9, 2013 at 8:11pm

आदरणीया गीतिका जी मेरी रचना पर आपकी उपस्थिति से मैं धन्य हुआ। आपको रचना पसंद आयी मेरा प्रयास सार्थक हुआ। आपका हार्दिक आभार!
सादर!

Comment by वेदिका on July 9, 2013 at 7:31pm

कितना खूब सूरत नवगीत लिखा आपने आदरणीय बृजेश जी! 

मैंने इस रचना को पहले नही देखा, इसलिए मै सबसे पहले माफ़ी मांग लेती हूँ, फिर बधाई देती हूँ आपको!   

//नयनों की परतें सूखी और दिल में सीलन छाई है//  ,,, क्या कहने, अद्भुत  कोम्बो प्रयोग!

// देखो अब आशाओं के पंख झड़े, तन सूख गये// ,,,, बहुत ही प्रभाव शाली पंक्ति ,, 

अति सुंदर नवगीत बना है!

आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है!!    

 

Comment by बृजेश नीरज on June 3, 2013 at 8:01am

आदरणीय यतीन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on June 3, 2013 at 7:59am

आदरणीय चिराग जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by yatindra pandey on June 3, 2013 at 12:13am

behad sundar rachna mere dil chu gayi

yatindra

Comment by Kedia Chhirag on May 17, 2013 at 5:42pm

निशब्द.......बहुत ही गहराई लिए हुए है ये रचना ...क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आता ...किन्तु बेहद मर्मस्पर्शी .........

Comment by बृजेश नीरज on May 16, 2013 at 7:03pm

आदरणीय केवल भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on May 15, 2013 at 10:12pm

आदरणीय रक्ताले साहब आपका हार्दिक आभार!

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 15, 2013 at 10:08pm

देखो

अब आशाओं के

पंख झड़े

तन सूख गए।

कितने कितने

सपनों के

श्वास से

संग छूट गए।

बस

टूटा बिखरा सा ये

जीवन

इक भरपाई है।।...........वाह! बहुत सुन्दर.

आदरणीय बृजेश जी सादर बहुत सुन्दर नवगीत रचा है सादर बधाई स्वीकार करें.

Comment by बृजेश नीरज on May 15, 2013 at 5:37pm

आदरणीय सौरभ जी
प्रथम तो आपका बहुत आभार! आभार कि आपने मेरे प्रयास को सराहा। आभार कि आपने मेरी सोच को दिशा दी।
कितने कितने आभार! शायद आपकी मेरी रचना पर टिप्पणी किसी आभार की सीमाओं को लांघकर आगे जा चुकी है जहां आभार व्यक्त नहीं किए जाते हैं दिल से सिर्फ महसूस किए जाते हैं। जहां आभार व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिलते। मैं निःशब्द हूं। बस महसूस कर रहा हूं आपके कहे को।
अज्ञेंय का जिक्र और उनकी वह पंक्ति, उसके बाद आपकी रचना। किसी सपनों की दुनिया से सैर कर लौटा हूं।
अपनी इस रचना को मैंने अपनी भाव चेतना में लिखना प्रारम्भ किया और फिर अनायास न जाने कैसे फुटपाथ पर रहते लोग मेरे दिमाग में आ गए। वहीं रचना का अंत हो गया।
आदरणीय कल्पना रमानी जी और आपने जो दृष्टिकोण मेरी सोच को दिया है वह महत्वपूर्ण है और रचनाकार के रूप में विकास के लिए महत्वपूर्ण भी। उसे आत्मसात करने का प्रयास करूंगा।
एक बार फिर से आपका आभार!
सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service