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(1)
कब मैंने तुमसे
वादा किया था कोई
अपने को मैंने कब बंधन में बाँधा
जो किया , तुमने ही किया
हर सुबह आलस्य तजकर
पूजा की थाल सजा
अरूणोदय होता तेरे दर्शन से .

(2)
मिथ्या लगी
जग की सारी बातें
जब मैंने तुमसे प्रीत की
अब क्रोध करूँ या मान करूँ
या करूँ अपने आप पर दया
रीति रिवाजों के नाम पर
खींच दी तुमने सिंदूर की लम्बी रेखा
भाग्य ने लिख दी माथे पर मृत्युदण्ड
चेहरे पर घूँघट खींचकर .

(3)
मौत का कहीं नामोनिशान नहीं
खामोश है तक़दीर
एक अदृश्य भय मन को सालता
सुहाग बिंदी दर्पण से पूछती
‘’ कब तक है अस्तित्व मेरा ? ‘

(4)
कितने सवाल उठते हैं ,
मगर अधूरे ,
मन की आशाएँ उतनी ही चंचल ,
सागर में उठती जितनी लहरें
आकाश में जितने हैं उड़ते बादल .

(5)
सदियों से नारी पूछ रही
है सवाल !
कभी कन्या कभी भार्या बन कर
कहाँ है मेरे पग तले की जमीन ?
इतनी बड़ी धरती में
मैं क्यों अस्तित्वहीन ?

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Comment

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Comment by Vindu Babu on May 29, 2013 at 3:50pm
क्षमा करें आदरेया आपकी इस उत्कृष्ट कृति तक इतनी देर से पहुंच सकी।
ऐसी कौन नारी होगी जिसके हृदयातल को नहीं कुरेदेगी ये रचना! पर ये सवाल शायद अनुत्तरित ही रहेगा।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है आदरणीय।
सादर बधाई स्बीकारें
Comment by Vindu Babu on May 29, 2013 at 3:49pm
क्षमा करें आदरेया आपकी इस उत्कृष्ट कृति तक इतनी देर से पहुंच सकी।
ऐसी कौन नारी होगी जिसके हृदयातल को नहीं कुरेदेगी ये रचना! पर ये सवाल शायद अनुत्तरित ही रहेगा।
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है आदरणीय।
सादर बधाई स्बीकारें
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 23, 2013 at 6:13am

नि:शब्द कर देती है आपकी हरेक पंक्तियाँ!

Comment by coontee mukerji on May 14, 2013 at 12:24pm

सीमा जी , जब तक दहेज प्रथा बंद नहीं होगी , जब तक बेटियाँ बिखती रहेंगी, नारियाँ सवालों का अंबार लगाती रहेंगी.. ....कभी मूक नयनों से सवाल करेगी तो कभी मुखर हो के ...........जिस दिन समस्या का समाधान हो जायगा तो देखिये  नारी का सौम्य और विलक्षण रूप ...जो अब तक नाना प्रकार की सामाजिक कुरीतियों में  जकड़ी हुई है ........... मेरी मेड के हाथ पर गाड़ी का पहिया चढ़ गया  यह  इसलिये कि उसे हाथ भर लम्बा घूँघट  निकाल  कर ससुराल जाना था......खैर जिंदगी एक जंग है पल पल मौत का सामना करना पड़ता तो है. मेरी रचना को मान देने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद .

Comment by Roshni Dhir on May 13, 2013 at 8:53pm

Mukrji ...

अति सुंदर ... सब पहले ही इतनी तारीफ कर चुके है .. मेरे तो बस ये तो शब्द ही है आपकी रचना के लिए अति सुंदर ..

आभार 

Comment by seema agrawal on May 9, 2013 at 8:48pm

स्त्री और पुरुष के बीच खींची सनातन प्रश्नों की दीवार एक बार पुनः नए कलेवर में आपकी रचनाओं में मिली 

सदियों से नारी पूछ रही
है सवाल !
कभी कन्या कभी भार्या बन कर
कहाँ है मेरे पग तले की जमीन ?
इतनी बड़ी धरती में
मैं क्यों अस्तित्वहीन ?................ शायद अब प्रश्न बंद कर प्रयास का समय आ जाना चाहिए अन्यथा प्रश्नों के ढेर  बढ़ते रहेंगे और समाधान का समय बीतता जाएगा 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 4, 2013 at 11:20pm

सदियों से नारी पूछ रही
है सवाल !
कभी कन्या कभी भार्या बन कर
कहाँ है मेरे पग तले की जमीन ?
इतनी बड़ी धरती में
मैं क्यों अस्तित्वहीन ?..............वाह........... बहुत सुन्दर यह पद सबसे सुन्दर है. 

Comment by KAVI DEEPENDRA on May 4, 2013 at 7:29pm

भावना, शब्द, हर लिहाज से काबिलेतारीफ....

Comment by Priyanka singh on May 4, 2013 at 7:26pm

बहुत सुन्दर शब्दो से सजाया अपने,उमदा.....बधाई

Comment by बृजेश नीरज on May 4, 2013 at 6:48pm

स्त्री पुरूष के संबंध बहुत ही नाजुक होते हैं। प्रेम और वासना, अहं और अस्तित्व, अधिकार और वर्चस्व के बीच झूलते इस संबंध के अंतर्संघर्ष को जिस खूबसूरती से आपने पिरोया है उसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।

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