For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुनो युवाओं....कुण्डलिया

नौटंकी का खेल है, दरबारों का आज
सत्ता चोर छिछोर की, डाँकू का है राज
डाँकू का है राज, झपट यह माल बनाते
पावन धरती खोद, उसे पाताल बनाते
कहते है कविराय, शुरू है उलटी गिनती
युवा आज के समझ रहे सारी नौटंकी
-------
नवपीढी के हाँथ मे, रहे धर्म की डोर
आकर्षित कुछ हो रहे, जो पश्चिम की ओर
जो पश्चिम की ओर, सभ्यता अपनी भूले
कैसे तुम हो पुत्र, प्रिय ! जो जननी भूले
कहते हैं कविराय, चुनो अब ऐसी सीढी
करो राष्ट्र निर्माण, धर्म से हे नवपीढी
---------
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 756

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by manoj shukla on May 3, 2013 at 5:43pm
आदर्णीय कुशवाहा जी..बहुत बहुत आभार
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 3, 2013 at 4:57pm

अति सुन्दर 

सादर बधाई 

आदरणीय मनोज जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 1, 2013 at 6:22pm

मेरे सुझाव को मान देने के लिए आभार आ० मनोज जी 

Comment by manoj shukla on May 1, 2013 at 6:15pm
आदर्णीया डा. प्राची जी आपका सादर आभार ....अन्तिम पंक्ति के बारे मे आपका सुझाव उत्तम है ....करो राष्ट्र निर्माण... ज्यादा ठीक है ...पुनः सादर आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 1, 2013 at 5:30pm

युवाओं की जागरूकता पर सुन्दर कुंडलिया छंद का प्रयास हुआ है.... बहुत बहुत बधाई 

कैसे तुम हो पुत्र, प्रिय ! जो जननी भूले..............इसमें एक बार मात्रा गणना पुनः जांच लें 
देश करो निर्माण, धर्म से हे नवपीढी...................करो राष्ट्र निर्माण करके देखिये विषम चरण को 

सादर शुभकामनाएं 

Comment by manoj shukla on May 1, 2013 at 3:50pm
आदर्णीय अरुण जी...आपका सादर आभार ...बस आपका स्नेह मिलता रहे...सादर
Comment by manoj shukla on May 1, 2013 at 3:50pm
आदर्णीय अरुण जी...आपका सादर आभार ...बस आपका स्नेह मिलता रहे...सादर
Comment by अरुन 'अनन्त' on May 1, 2013 at 3:34pm

आदरणीय मनोज जी बहुत ही सटीक कुण्डलिया छंद रचा है आपने, काश आपकी कुण्डलिया पढ़कर नव युवकों की नकारात्मक सोंच बदले. खैर इस सुन्दर कुंडलियों हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by manoj shukla on May 1, 2013 at 9:42am
आदर्णीय श्री.अशोक जी आपका सादर आभार आपका प्रशंशा रुपी आशिर्वाद पाकर मै धन्य हुआ ....हार्दिक आभार
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 1, 2013 at 8:31am

आदरणीय मनोज शुक्ल जी सादर, बहुत उत्तम कुण्डलिया, और विशेषकर मैं दुसरे छंद पर कहूंगा क्या भाव है,और इतना अच्छा संदेश है जिसे हर युवा को समझना चाहिए. बहुत खूब! हार्दिक बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service