For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया

बह्र : रमल मुसम्मन सालिम

वक्त ने करवट बदल ली जो अँधेरा छा गया,

आसमां की सैर करने चाँद चलकर आ गया,

प्यार के इस खेल में मकसद छुपा कुछ और था,

बोल कर दो बोल मीठे जुल्म दिल पे ढा गया,

बाढ़ यूँ ख्वाबों की आई है जमीं पर नींद की,

चैन तक अपनी निगाहों का जमाना खा गया,

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,

देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 656

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on April 29, 2013 at 4:22pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by akhilesh mishra on April 29, 2013 at 3:18pm

भाई सालिम जी बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिए ।

Comment by राजेश 'मृदु' on April 29, 2013 at 2:01pm

अच्‍छी गजल के लिए हमारी शुभकामनाएं, आपसे और शानदार गजल की अपेक्षा है

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 29, 2013 at 7:37am

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,...............बस झूठ का ही बोलबाला है.

सुन्दर गजल कही है भाई अरुण जी बहुत बहुत दाद कुबुलें.

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2013 at 11:14pm

आज ग़ज़ल को जिस तेवर के साथ जन-जन की आवाज बनना है और बन भी रही है, उसका शानदार नमूना पेश करती आपकी यह ग़ज़ल काबिले गौर और काबिले तारीफ है

खास कर ये शेर तो सटाक से आ कर सीने पर लगा है

झूठ का बाज़ार है सच बोलना बेकार है,

झूठ की आदत पड़ी है झूठ मन को भा गया,

इस ग़ज़ल के लिए और खास कर इस तेवर के लिए आपको ढेरो दाद पेश करता हूँ

समय की मांग यही है कि इस तेवर की ग़ज़लें कहते रहिये
शुभकामनाएं

Comment by ajay sharma on April 28, 2013 at 11:14pm

wah wah wah 

तालियों की गडगडाहट संग बाजी सीटियाँ,

देश का नेता हमारा यूँ शहद बरसा गया.....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service