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‘‘गजल‘‘
एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।
वज्न......1222 1222 1222 1222

कुसुम को तोड़कर किसने, हसीनों को रिझाया है।
रूहानी जानकर उसने, मकानों को सजाया है।।1

जहां में और भी किस्से, सुनाया नाम पाया है।
चुराकर रात का काजल, सुनयनों को लगाया है।।2

चला है शाम से नश्तर, सितम भी खूब ढाया है।
वतन को छोड़ आफत में, बेगानों को छिपाया है।।3

यहां कातिल वहां मंजिल, बहानों से बुलाया है।
खुदा को भूल आया वो, सकीनों को रूलाया है।।4

बहा जो अश्क सावन में, कसक इंतजार छाया है।
समन्दर में लगा पावक, गुनों किसने बुझाया है।।5

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2013 at 6:12pm

आ0 रक्ताले जी,   जी सर !    मैं ओ0बी0ओ0 पर अध्यन कर रहा हूं और समस्याएं भी कम होती जा रही हैं। आपका बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2013 at 6:07pm

आ0 वीनस केसरी जी,   जी भाई !  बात समझ में आगई।  मैं ओ0बी0ओ0 पर अध्यन कर रहा हूं।  आपका बहुत बहुत आभार सहित धन्यवाद।  सादर,

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 7:40am

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, आदरणीय प्रधान संपादक जी का प्रश्न बिलकुल सही है. गजलों पर आदरणीय वीनस जी ने क्रमवार कई आलेख लिखे हैं यदि आप मोबाइल पर उसे पढ़ सके तो आपकी समस्याओं का हल बिना प्रश्न के ही हो जाएगा.ऐसा मुझे लगता है. शुभकामनाएं.

Comment by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 10:41pm

केवल प्रसाद जी,
आपके तीसरे मतला के मिसरा-ए-सानी पर गणेश भाई ने कोई इस्लाह पेश नहीं की है और वो बेबह्र है
आप उस पर नज़र-ए-सानी फरमा लें ...

मात्र दूसरी ग़ज़ल ले लिहाज से आपका प्रयास स्तुति योग्य है ....
शुभकामनाएं 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 8:48pm

आ0 वीनस केसरी जी,   भाई जी,   आ0 गणेशजी द्वारा इसी गजल को शुध्द किया गया है।   क्या आपने उसे देखा?  अगर नहीं देखा हो, तो कृपया एकबार देखकर बतायें कि इसमें अभी और क्या हो सकता है।  आ0 गणेशजी सर की बात मेरे समझ में आ रही है।  मैनें शेर को भी मतले में ही लिखा था।  आदर सहित,

Comment by वीनस केसरी on April 25, 2013 at 1:21pm

स्वागत है केवल प्रसाद जी,
परन्तु सुन्दर प्रयास और सफल प्रयास के अंतर को समझना भी आवश्यक है
साहित्य सृजन का कोई कोई प्रयास 'असुंदर' नहीं होता परन्तु जानकारी के आभाव में 'असफल' जरूर हो सकता है ...

अभी इस रचना को तगज्ज़ुल के लिहाज से भी ग़ज़ल होने में एक लम्बा सफ़र तय करना होगा ...
शिल्पगत कुछ और बातों पर भी ध्यान दीजिये

शुभकामनाएं

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 9:42am

आ0  वीनस केसरी जी,   भाई जी! मैंने निश्चय किया था कि आपसे वार्ता करके अपनी समस्या का निवारण करूंगा लेकिन आ0 गणेशजी सर ने मेरी गजल को स्पष्ट करके  मेरी समस्या का अन्त कर दिया।  फिर भी इसका मतलब यह नहीं कि मैं आपसे सेवा नहीं लूंगा।  मैं आपसे अवश्य ही सम्पर्क करूंगा। आप  लोगों की व्यस्तता को समझकर ही सम्पर्क करने से बचता हूं।  आपके साहस वचन ने मेरा मनोबल बढ़ा दिया है।  आपका उत्साहवर्धन मेरे लिए संजीवनी है।  आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 9:30am

आ0  सुरेन्द्र भ्रमर जी,   आपका उत्साहवर्धन मेरे लिए संजीवनी है।  आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 25, 2013 at 9:27am

आ0 बृजेश नीरज जी,   भाई जी आपका सुझाव सरआंखों पर।  आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by वीनस केसरी on April 24, 2013 at 11:58pm

सुन्दर प्रयास ...

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