For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु कथा : ब्रह्मराक्षस का कुत्ता

महानगर के सबसे शानदार इलाके की सबसे अच्छी कोठियों में से एक में ब्रह्मराक्षस रहता है। वो स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा विद्वान समझता है और चाहता है कि उसकी विद्वत्ता के चर्चे चारों दिशाओं में हों। समय समय पर ज्ञान के प्यासे लोग उसके पास आते रहते हैं। वो फौरन उनको अपना शिष्य बना लेता है। फिर उनके कानों में फुसफुसाकर गुरुमंत्र देता है। जैसे ही शिष्य इस गुरुमंत्र का उच्चारण करता है वो कुत्ता बन जाता है। इसके बाद ब्रह्मराक्षस अपनी तमाम पोथियाँ उसके सामने बाँचता है। तत्पश्चात ब्रह्मराक्षस उसके गले में अपने नाम का पट्टा डालकर कहता है कि जाओ इस ज्ञान को दुनिया भर में फैला दो।

कुत्ता सब के घरों के सामने जा जाकर वो सारा ज्ञान उगलने की कोशिश करता है जो उसे ब्रह्मराक्षस से हासिल हुआ था पर उसके मुँह से केवल केवल भौं भौं की आवाज ही निकलती है। दो चार घरों के सामने भौंकने के पश्चात उसे ये मालूम पड़ जाता है कि अब वो ब्रह्मराक्षस के अलावा किसी और की भाषा समझ ही नहीं पाता। इस सबके परिणामस्वरूप लोग उसे विद्वान समझने के बजाय किसी के घर से भागा हुआ पालतू कुत्ता समझते हैं और दरवाजे से ही बाहर निकाल देते हैं। कुछ एक घरों में उसने जबरन घुसने की कोशिश की मगर वहाँ से उसे डंडा मारकर बाहर निकाला गया।

बेचारा थका हारा कुत्ता एक दिन वापस ब्रह्मराक्षस की कोठी पर आता है। ब्रह्मराक्षस ये समझ नहीं पाता कि जो कुत्ता उसकी भाषा इतनी आसानी से समझ लेता है और उसकी तारीफ में दुनिया के तमाम शब्दों का एकदम शुद्ध उच्चारण करता है वो बाहर जाकर आम आदमी को न कुछ समझा पाता है न ही आम आदमी की कोई बात समझ पाता है। आखिर क्यों?

-------------------

(स्वरचित एवं अप्रकाशित)

Views: 1290

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 24, 2013 at 5:14pm

क्षेत्र कोई हो संप्रेषणीयता आवश्यक है. इस हेतु संयत वैचारिक प्रवाह को उपयुक्त शब्द देना होता है. इसी पवित्रतम पक्रिया से किसी नाजायज़ बाइ-प्रोडक्ट की तरह मठाधीशी पैदा होती है जिसकी आपने इंगितों से क्या खूब खबर ली है, आदरणीय धर्मेन्द्र भाई.

अन्य क्षेत्र इस मठाधीशी के खिलाफ़ चाहे जैसे लड़ें-भिड़ें, काश साहित्य के आँगन में ऐसे उग आये खर-पतवार सदृश ब्रह्मराक्षस कितनी घिनौनी विसंगतियों को जन्म देते हैं यह आप ही नहीं बल्कि सभी संवेदनशील मनस इससे परिचित है. काश इसमें प्रबुद्ध रचनाकारों का भी सार्थक योगदान होता ताकि नव-हस्ताक्षर ’कुत्ता’ बनने से बच पाते.

ओबीओ की कोशिश आपकी कहानी के बरअक्स और पूजनीय लगने लगी है.

प्रासंगिक बिम्ब के अद्भुत प्रयोग से पगी इस अद्भुत लघुकथा हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 24, 2013 at 9:54am

आ0  धमेंद्र जी,  ज्ञान के साथ ही विवेक अर्थात सद्गुरू का मनन परमावश्यक है।  इसके बिना मात्र ज्ञान अहंकार का अंध कूप ही है। विवेक मंथन को दिशा देती रचना।  बधाई स्वीकारे।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service