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सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

मन की प्रणय पाती साजन को मिली आज 

हुआ यकायक मुझे अंदेशा 

भेजा उसने कोई संदेशा 

नेह नीर बिना  शुष्क हुई थी 

देह प्रीत बिना  रुष्ट हुई थी 

लिपट पवन  संग  हिय तरु की डारि  हिली आज 

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

आह्लादित  मन लहका- लहका

प्रीत  उपवन  है   महका- महका  

मिले गले जब भ्रमर औ कलिका   

हया दीप संग  जलती   अलिका    

विरहाग्नि से हुई विक्षत चुनरिया सिली आज   

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

जाने क्यों ये मन भरमाया 

खुदी  में ढूँढू उसका साया 

इत - उत देखूं लगे वो आया 

झट चौखट  पे दीपक  जलाया 

सागर मन मध्य मौजों की खुशियाँ रिली आज 

सखी री मोरे अंगना में धूप  खिली आज 

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Comment by rajesh kumari on April 16, 2013 at 9:23am

प्रिय सखी कुंती जी आपकी आत्मीय प्रतिक्रिया से मन हर्षित हो झूम उठा आपका प्रभूत हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2013 at 9:20am

ब्रजेश कुमार सिंह जी अनमोल टिपण्णी हेतु आपका हार्दिक आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2013 at 9:19am

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी गीत को पसंद कर सराहने हेतु  हार्दिक आभार |

Comment by coontee mukerji on April 15, 2013 at 11:25pm

सखी री मोरे अंगना में धूप खिली आज ! सखि राजेश कुमारी  !  मेरो मन मोह गयो  री . '..... ये विरह भी न , न जीने देता है न मरने  ...मन में हमेशा मिलन की आश जगी रहती है  . आज कल तो नेट ने सब कुछ सत्यनाश कर रखा है . पहले जब चिट्ठी लिखते थे तो  पिया से ज्यादा पोस्टमेन का इंतज़ार होता था .कितनी बेसब्री और मन में पूरा सागर लहराता था .अति सुंदर .सखी ! सादर कुंती

Comment by बृजेश नीरज on April 15, 2013 at 11:11pm

प्रेम रस में झूमती सुन्दर रचना के लिए आपको कोटि कोटि बधाई।
सादर!

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 10:53pm

विरह के बाद प्रीत के संदेश पर झूमती गाती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें अदारेया राजेश कुमारी जी सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 7:47pm

केवल प्रसाद जी आपको गीत पसंद आया मेरी लेखनी का मान बढ़ा  हार्दिक आभार आपका । 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 15, 2013 at 7:05pm

आदरणीया, राजेश कुमारी जी, ’इत . उत देखूं लगे वो आया, झट चौखट पे दीपक जलाया ’ अतिसुन्दर, मुग्धकारी गीत। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2013 at 6:10pm

आदरणीय विजय निकोर जी आपको गीत पसंद आया लेखन को सार्थकता मिली ह्रदय से आभारी हूँ |

Comment by vijay nikore on April 15, 2013 at 6:05pm

राज जी:

सुन्दर लोकगीत .... सुन्दर भावनाएँ ।

 

सादर,

विजय निकोर

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