नीर के बापू ये तुम ठीक नहीं कर रहे हो एक ही तो रोजी रोटी का सहारा है ये बकरी उसे भी बेचना चाहते हो गोमती ने कलुवे के हाथ से रस्सी छुडाते हुए कहा कलुआ गुस्से में लगभग चीखता हुआ बोला बकरी तो फिर आ जायेगी भागवान देश का इतना बड़ा मंत्री एक गरीब के झोंपड़े में रोज थोड़े ही आता है आएगा तो चार आदमियों के खातिरदारी का बंदोबस्त तो करना ही पड़े है न तभी तो हमारा भी कुछ उद्धार हो पायेगा । अगले दिन सुबह से कलुवे के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे मंत्री जी का स्वागत सजी धजी नई साडी पहन कर गोमती ने टीका लगा कर किया मेंत्री जी के अंगरक्षक और उनके साथ आई भीड़ से कलुवे का झौपडा भर गया मंत्री जी ने कैमरे के सामने इतने सारे व्यंजनों में से सिर्फ पानी का एक घूँट भरा इधर- उधर की बातें कर अंत में सबके सामने हाथ जोड़ कर विदा मांगी रास्ते में एक अंगरक्षक ने पूछ मंत्री जी जो कलुवे ने ये देशी घी की मिठाई का डिब्बा दिया है उसे भी क्या पहले की तरह आपके कुत्तों को ?? बेवकूफ हुआ है क्या पिछली बार की तरह मेरे कुत्तों को बीमार करना है क्या ?देख वो सामने मंदिर आ रहा है कितने पिल्ले ओह सारी बच्चे बैठे हैं उनको बाटं दो ,जब मंदिर के सामने गाड़ी रुकी तो बोले अरे अरे रुको मैं बाँट के आता हूँ। और अगले दिन अखबार में मंत्री जी का भिखारी बच्चों को मिठाई बांटते हुए कुटिल मुस्कान के साथ बड़ा सा फोटो छपा। उधर गोमती सुबह-सुबह अपने बच्चों के दूध मांगने पर बकरी के खाली खूँटे को देखती हुई
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आदरणीय अशोक रक्ताले जी रचना पर आपकी मुहर लग गई हार्दिक आभार ।
आदरेया राजेश कुमारी जी सादर, आज के महान राजनेताओं पर बहुत ही सुन्दर धारदार व्यंग. बहुत बहुत शुक्रिया.
गन्दी राजनीति गन्दी मानसिकता से विकसित होती है जो इस मानसिकता के लोग हैं वही राजनीती में आसानी से प्रवेश पाते हैं गरीब कहाँ जाए सतयुग नहीं है घोर कल युग है ,कुंती जी मेरी रचना को आपका स्वर मिला ह्रदय से आभारी हूँ |
राजेश कुमारी जी , इसी को राजनीति कहते है . साँप भी मरे लाठी भी न टूटे .....गोमती का तो दुर्भाग्य कभी उसका पीछा नहीं छोड़ेगा..
क्योंकि गरीबी ही उसका सब से बड़ा दोष है .सुंदर कथा .सादर . कुंती .
प्रिय संदीप जी बस इन दोगले चरित्र वाले नेताओं की फितरत को उजागर करने का प्रयास किया है इस आत्मीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार।
प्रिय गीतिका वेदिका जी इन दोगले चरित्र वाले नेताओं को काफी जनता जानने लगी है किन्तु दूर दराज के गाँव में अभी भी लोग इनको देवता समझ कर उनकी पूजा करते हैं और ये नेता लोग वाहवाही बटोरने के लिए किसी हद तक भी जा सकते हैं आपकी इस आत्मीय प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार |
लेकिन भूख से तड़फडाते भूखे बच्चे और उनकी बेचारी माँ ...निर्विकल्प है :((((((((
नेताओं से और उम्मीद भी क्या की जा सके है ....लेकिन नीर के बापू कलुवे को तो समझना चाहिए था ...बहुत समय से नेता भाई लोग ऐसा करते चले आ रहे है न ....सुधरेगें थोड़े ही ...
बहुत सही लेख आदरणीया राजेश कुमारी जी!
प्रिय प्राची जी आपको कहानी पसंद आई मर्म की संवेदनशीलता को आपने महसूस किया आपकी उत्साह वर्धन करती हुई प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार |
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