नारी तू नहीं है अबला
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नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
खुद को शोषित मान ले
फिर कौन करे सम्मान
दूषित जग से लड़ना होगा
खुद ही आगे बढ़ना होगा.
रूप धार कर रण चंडी का
अधिकार छीन लेना होगा
जगा आत्म अभिमान
नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
क्या क्या नही तुझे सब कहते
कैसी कैसी फब्ती कसते
तुझे मूढ़ अज्ञानी कहते
दुर्गुण आठ सदा उर रहते
सब मिल करते बदनाम
नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
पोखर सी ख़ामोशी क्यों
सागर सी तू रह मौन
कर बुलंद अपने को तू
आकाश झुके पूछे तू कौन
जग के इन झंझावातों में
तुझको स्वयं संवरना होगा
अब मत रहना अनजान
नारी तू नहीं है अबला
है शक्ति स्वयं पहचान
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीया वन्दना जी
सादर अभिवादन.
स्नेह दिया, आभार,
आदरणीय विनय जी
सादर
आपने होंसला बढ़ाया.
गीत में बदल दीजिए.
प्रतीक्षा है ,सादर
आदरणीय संदीप जी
सादर आभार.
स्नेह बनाये रखिये
स्नेही केवल प्रसाद जी
सादर आभार
आदरणीय ब्रजेश जी
सादर
संघर्ष स्वयं ही करना पड़ता है.
आभार समर्थन हेतु सस्नेह.
नारी की स्थिति का उत्थान तब तक संभव नहीं जब तक वो स्वयं की शक्ति को पहचान न ले..
कई नारीवादी संगठन जो महिलाओं के अधिकारों की बात करते हैं, उनका यही कहना है...कि नारी उत्पीडन को जी अपनी ज़िंदगी स्वीकार कर लेती है, और स्वयं ही पुरुष को अपने से ऊपर का दर्जा देना सही समझती है.... नारी की ही सोच को बदलना सबसे बड़ी चुनौती होती है उनके सामने...
नारी तू नहीं है अबला
अपनी शक्ति पहचान.... इन शब्दों में नारी के मनोबल को बढाती अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई
नारी उत्थान को सम्बल देती सुन्दर रचना आदरणीय प्रदीप जी बधाई स्वीकारें.
सुन्दर रचना। बहुत बहुत बधाई आपको
नारी तू नहीं है अबला
अपनी शक्ति पहचान
बहुत ही खूबसूरती से पिरोया है आपने शब्दों को .....सच तो यही है नारी को स्वयं ही अपनी शक्ति पहचाननी होगी...तभी उसकी स्थिति में परिवर्तन होगा
जग के इन झंझावातों में
तुझको स्वयं संवरना होगा
यह बात सच है नारी को अपनी ताकत अर्जित कर स्वयम ही अपनी लड़ाई लड़नी है ....लेकिन सबसे बड़ी विडम्बना यहीं है कि औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुशमन है .सादर कुंती
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