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हास्य घनाक्षरी

 

आप तो पहाड़ हम माटी भुरभुरी वाली

धूल न हो जाएँ कहीं , गले न लगाइए

आपका शरीर है ये तन से अमीर बड़ा

दुबले गरीब हम रहम तो खाइए

माटी वाला घर मेरा और द्वार छोटा बना

टूट नहीं जाए ज़रा धीरे धीरे आइए

फूल थी जो आप कद्दू हो गयी हो आजकल 
ऐसा क्या है खाया ज़रा हमें भी बताइए

 

संदीप पटेल “दीप”

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 12, 2013 at 1:02pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम
आपने इस प्रयास को सराह के मनोबल बढ़ा दिया है गुरदेव
ये स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
सादर आभार आपका


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 12, 2013 at 12:36am

प्रियतमा की इतनी मनोहारी दशा प्रस्तुत हुई है कि आपके सुख और धीरज से ईर्ष्या हो रही है, हा हा हा

बधाई हो भाई बधाई.. .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 5, 2013 at 11:17pm

आदरणीया कुंती जी, आदरणीया सीमा दी, आदरणीय अशोक सर जी, आदरणीय अजय सर जी आप सभी का बहुत बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by Dr.Ajay Khare on April 5, 2013 at 1:21pm

sandeep ji sateek ghanchhari ban padi hai badhai

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 9:07pm

आदरणीय भाई संदीप जी सुन्दर हास्य घनाक्षरी प्रस्तुत की है. मगर यह व्यंग की तलवार खिंची कहाँ है......भाई जी. हा हा हा........ बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. 

Comment by seema agrawal on April 4, 2013 at 7:10pm

ओह क्या बात है संदीप ..सारा दुःख बयान हो गया इस घनाक्षरी में ..फिर भी हास्य कह रहे हैं इसे ..महान हैं आप .......

Comment by coontee mukerji on April 4, 2013 at 2:50pm

संदीप जी ज़रा सम्भलके कहीं कद्दू भारी न पड़ जाए.बहुत सुंन्दर .

मत पूछिये हम खाते क्या हैं

डाइट कर  के हुआ  हाल है.

घर छोटा है तो क्या हुआ

अभी हमारा सोलवाँ साल है.

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 4, 2013 at 2:25pm

हहाहाहा बहुत ही सुन्दर खूबसूरत लाजवाब मित्रवर बात बन गई भाई पूरी पूरी बन गई , हास्य का रंग जमा है चकाचक खुद को लें हंसाय. बेहद सुन्दर प्रयास हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 1:19pm

आदरणीया डॉ प्राची जी सादर प्रणाम
मेरी रचना ने आपको हंसाया लेखन सफल हुआ
स्नेह यूँ ही बनाए रखिए
बहुत बहुत आभार आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 1:03pm

आदरणीय गणेश बागी सरजी सादर आभार आपका ये स्नेह और आशीष यूँ ही बनाए रखिए अनुज पर 

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