For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुम्हार सो गया

थक गया होगा शायद

 

मिट़टी रौंदी जा रही है

रंग बदल गया

स्याह पड़ गयी

 

चाक घूम रहा है

समय चक्र की तरह

लगातार तेजी से

उस पर जमी

मिट्टी तेज धूप में

सूख गयी

उधड़ रही है

पपड़ियों के रूप में

 

पछुआ हवाओं के साथ

उड़कर आयी

रेत और किनकियां

चारों तरफ बिखरी हैं

रौशनी में चमकती हुई

उड़कर आंख में पड़ जाती है

जब तब

चुभती हैं

 

चारों तरफ बिखरे बर्तन

धीरे धीरे समय बीतने के साथ

टूटते जा रहे हैं

कच्चे और अधपके बर्तन

टूटकर मिट्टी में मिल गये

रेत और किनकियों के साथ

 

ठंडी पड़ती जा रही

भट्टी की आंच

 

अब बर्तन नहीं बचे

घर में

पानी पीने को भी

 

कुम्हार!

क्या जागोगे तुम?

 

जागो

इस आंच को तेज करो

उठाओ डंडी

घुमाओ यह चाक

इस रेत और किनकियों से इतर

तलाशो साफ मिट्टी

चढ़ा दो चाक पर

बना दो नए बर्तन

हर घर के लिए

 

ये सोने का समय नहीं।

         - बृजेश नीरज

 ओ बी ओ की वर्षगांठ पर सभी को मेरी शुभकामनाएं!

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on April 3, 2013 at 6:52pm

आदरणीय विजय जी आपका बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 3, 2013 at 6:51pm

राजेश जी मैंने भी अपनी यह कविता अभी पढ़ी तो मुझे भी कुछ ऐसा ही लगा।

Comment by बृजेश नीरज on April 3, 2013 at 6:48pm

आदरणीय विजय जी आपका बहुत आभार!

Comment by विजय मिश्र on April 3, 2013 at 6:22pm

आपको भी ओ बी ओ के वर्षगाँठ की अनेक शुभाशंसाएँ भाई बृजेशजी और सचमुच अच्छी मिट्टी का अभाव और उसकी वजह से बर्तन का गढन भी बिगड़ गया है .  जगकर सुथर मिट्टी ढूडने के दौर में हैं हम ताकि सुन्दर आकार के साथ गढन में सुन्दर संस्कार भी उभरे. काव्य का अंतर्निहित सन्देश और कविता दोनों ही प्रसंशनीय .

Comment by राजेश 'मृदु' on April 3, 2013 at 1:15pm

बहुत से बिंब हैं इस रचना में यदि सावधानी से ना पढ़ा जाए तो पूरी कविता एक गड़बड़झाला प्रस्‍तुत करती है पर सावधानी से पढ़ने पर सबकुछ स्‍पष्‍ट हो जाता है, बहुअर्थी बिंबों को समझना कुछ कठिन लगा, सादर

Comment by vijay nikore on April 3, 2013 at 9:31am

आदरणीय बृजेश जी:

 

कविता के सारे भाव अच्छे लगे..

 

//कुम्हार!

क्या जागोगे तुम?//

यह २ पंक्तियाँ हैं जो कविता का सार हैं

और रह-रह कर पठक को झकझोरती हैं,

उठने को, जागने को, प्रेरित करती हैं।

 

बधाई।

विजय निकोर

Comment by बृजेश नीरज on April 2, 2013 at 10:19pm

आदरणीया कुन्ती जी, आपका आभार!
लेकिन मेरे और आप दोनों के लिए एक राहत है कि इस कविता का भावार्थ आदरणीय गुरूजनों ने उपलब्ध करा दिया। मैं स्वयं भी शायद ऐसा प्रस्तुतीकरण न कर पाता जैसा गुरूजनों ने किया है। यह भी मेरे लिए एक सीखने की बात हुई।

Comment by बृजेश नीरज on April 2, 2013 at 10:04pm

संदीप भाई आपका आभार! आपको नवनियुक्ति पर बधाई। नई जिम्मेदारी पाने के बाद मेरी रचना पर आपकी टिप्पणी देखकर मुझे सुखद अनुभूति हुई। 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 2, 2013 at 9:54pm

बहुत सुन्दर कविता रची है आपने

सच कहा आपने ये वक़्त सोने का नहीं हैं ने गढ़ने का है वाह

बेहतरीन रचना

बहुत बहुत बधाई हो आपको

Comment by coontee mukerji on April 2, 2013 at 8:04pm

नीरज जी  हम बचपन में दार्शनिक कविता पढ़ते थे  जिसका भवार्थ करना होता था.आपकी कविता पढ़ आज वही दिन याद आ गया

पढ़ना सोचना समझना. इसके भाव बड़े गम्भीर है .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"ओबीओ का मेल चेक करें "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय सौरभ सर सादर नमन....दोष तो दोष है उसे स्वीकारने और सुधारने में कोई संकोच नहीं है।  माफ़ी…"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"भाई बृजेश जी, आपको ओबीओ के मेल के जरिये इस व्याकरण सम्बन्धी दोष के प्रति अगाह किया था. लेकिन ऐसा…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय धामी जी स्नेहिल सलाह के लिए आपका अभिनन्दन और आभार....आपकी सलाह को ध्यान में रखते हुए…"
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार और नमन करता हूँ...आपसे आदरणीय नीलेश…"
2 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय नीलेश जी सर्व प्रथम रचना पटल पे उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार....वैसे ये…"
3 hours ago
Admin posted discussions
13 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
14 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
" आदरणीय सुशील सरना जी सादर, जीवन के सत्य पर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थित और मार्गदर्शन के लिए आभार। कुछ सुधार किया है…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service