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सखी! साजन नहि आए रात।

सखी! साजन नहि आए रात।

नयन से नीर,
झर झर टपकत,
सावन झरै बरसात।


सुन्दर-सुन्दर,
सेज सजाई,
करवट करे उफनात।।
सखी! साजन नहि आए रात।

द्वार खड़ी पथ,
उड़त धूल अस,
बड़ा तूफान गहरात।


अब फिर डूबा,
सूरज पछुवा,
फिर-फिर डसे कस रात।।
सखी! साजन नहि आए रात।
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 5:50pm

आदरणीया, राजेश कुमारी जी, आपकी सराहना एवं उत्साह वर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 5:48pm

आदरणीय, राम शिरोमणि पाठक जी, आपकी सराहना एवं उत्साह वर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 5:47pm

आदरणीय, आशीष नैथानी सलिल जी, आपकी सराहना एवं उत्साह वर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 5:42pm

आदरणीय, गुरूजी,सौरभ पाण्डे जी, आपके आशीष वचनों से मैं धन्य हो गया। सादर एवं बहुत-बहुत हार्दिक आभार।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 2, 2013 at 5:35pm

आदरणीया, कुन्ती मुखर्जी जी, आपके उत्साह वर्धन हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 1, 2013 at 11:19pm

एक विरह्नि कि हिय व्यथा को क्या खूब शब्द दिए हैं अति सुंदर बहुत बहुत बधाई

Comment by ram shiromani pathak on April 1, 2013 at 4:49pm

 अति सुन्दर..भाई केवलजी.

बहुत बहुत बधाई.. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 1, 2013 at 1:10pm

व्यग्र और आकुल दशा की कथा बताता पारंपरिक गीतों की परिधि में आपने सुन्दर गीत रचा है, भाई केवलजी.

बहुत बहुत बधाई.. .

Comment by coontee mukerji on April 1, 2013 at 1:00am

मन को छू देने वाला अति सुंदर गीत . केवल जी  अच्छा लगा.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 31, 2013 at 10:42pm

भाई केवल प्रसाद जी....
क्या सुन्दर गीत प्रस्तुत किया है विरह का, वेदना का, प्रतीक्षा का |

सुन्दर-सुन्दर,
सेज सजाई,
करवट करे उफनात।।
सखी! साजन नहि आए रात।

अति सुन्दर...  हार्दिक बधाइयाँ....

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