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प्राण-पल

       

                      प्राण-पल

 

पेड़ से छूटे पत्ते-सा समय की आँधी में उड़ा

मैं हल्के-से तुम्हारे सामने था आ गिरा,

तुमने मुझे उठाया, देखा, परखा, मुझको सोचा,

जाने क्यूँ मुझको लगा

कि वह पल मेरी बाकी ज़िन्दगी से अलग

मेरा ज़्यादा अपना था, अधिक प्रिय था,

और बिना सोचे समझे मैं ख़यालों में डूबा

मोती-से उस पल को हथेली में रख कर

देखता रहा, देखता रहा, देर तक सोचता रहा

कि तुम्हारी ज़िन्दगी का वह समानान्तर पल भी

जिसको तुमने उस समय

अपने आँचल के कोने से बाँध कर, सम्हाल कर,

मुझको इतना सम्मान दिया था,  वह पल

अभी भी तुम्हारे आँचल के छोर से बंधा था क्या?

या, पेड़ से छूटे सूखे पत्ते-सा  अब उसको तुमने

अलगावों की तिमिर भरी आँधी में उड़ा दिया था,

क्योंकि अब कुछ अरसे से मुझको

तुम्हारे उस पल की समकालिक धड़कन

मेरी हथेली में संजोए इस प्राण-पल के संग

टिक-टिक करती सुनाई नहीं देती।

                  

                   -------

                                         -- विजय निकोर

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Comment by अरुन 'अनन्त' on March 31, 2013 at 11:26am

आदरणीय ह्रदय में विद्यमान भावों को बहुत ही सरलता एवं सुन्दरता से उकेरा है हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 31, 2013 at 9:17am

अभी भी तुम्हारे आँचल के छोर से बंधा था क्या?

या, पेड़ से छूटे सूखे पत्ते-सा  अब उसको तुमने

अलगावों की तिमिर भरी आँधी में उड़ा दिया था,

क्योंकि अब कुछ अरसे से मुझको

तुम्हारे उस पल की समकालिक धड़कन

मेरी हथेली में संजोए इस प्राण-पल के संग

टिक-टिक करती सुनाई नहीं देती।

        कभी-कभी बाहर की परिस्थितियों,व्यस्तताओ,अड़चनों के शोर इतने बढ़ जाते हैं कि हिय स्पंदन की आवाजें दब जाती हैं जिनसे सामने वाला प्रतिकूल अर्थ निकाल बैठता है ,मन के कोमल भावों को बहुत सुंदर शब्दों से बांधा है आपकी रचनाएँ पाठक को खींचती हैं बहुत बहुत बधाई

Comment by vijay nikore on March 31, 2013 at 7:24am

आदरंणीय सौरभ जी:

 

जैसा कि आपने इस कविता में देखा, मेरी कविताएँ प्राय: भावनाओं के माध्यम सूक्षम को ही इंगित करती हैं ... स्थूल और सूक्षम का संतुलनभार करना एक श्रमसाध्य कला है, जिसके लिए मैं प्रत्येक रचना को न जाने कितनी बार पढ़ता हूँ ... कभी एक शब्द यहाँ, तो कभी एक भाव वहाँ बार-बार बदलता हूँ ... फिर भी कभी-कभी संतुष्टि नहीं होती। आपके अमूल्य सुझाव के लिए मैं आपका आभारी हूँ ...मेरा प्रयास जारी रहेगा।

 

//एक सफ़ल प्रेम-प्रवाही कविता के लिए आपका सादर धन्यवाद व अतिशय बधाइयाँ.//

यह कह कर आपने मुझको जो मान दिया है उसके लिए मैं आभारी हूँ, सौरभ जी।

ऐसे ही अपनत्व और संबल बनाए रखें।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 31, 2013 at 6:17am

पारस्परिक भावनाओं की ऊहापोह को शब्द देने का प्रयास अच्छा लगा. भावुक शब्दों से वाग्जाल का ताना-बाना हृदय के तंतुओं को भी भला लगता है. अधिक स्पष्टता और तदनुरूप सतत शाब्दिक होने से बचा जाता तो यही भाव-संप्रेषण गहन इंगितों का अभिनव कारण होता. स्थूल द्वारा इसी स्थूल पटल माध्यम से सूक्ष्म और कारण तत्व को इंगित करना सदा से अधिक रोचक हुआ करता है.

चूँकि आपकी रचना का उत्स ही सूक्ष्म के प्रति इंगित है, अतः मैं निवेदन कर पा रहा हूँ, आदरणीय.

मुझे भान है कि मेरे कहे का अन्वर्थ आपके लिए सहज एवं स्पष्ट होगा.

एक सफल प्रेम-प्रवाही कविता के लिए आपका सादर धन्यवाद व अतिशय बधाइयाँ.

सादर

Comment by coontee mukerji on March 31, 2013 at 1:13am

विजय जी ,मानना पड़ेगा आपको .कोमल भावनाओं के वर्णन करने में आपका कोई सानी नहीं.आप यूँही लिखते रहें .

Comment by Savitri Rathore on March 31, 2013 at 12:21am

आदरणीय विजय जी,सादर नमस्कार!
अत्यंत सुन्दर तरीके से मन के सुकोमल भावों की अभिव्यक्ति करती सुन्दर रचना।बधाई हो।

Comment by vijay nikore on March 30, 2013 at 8:43pm

 

प्रिय मित्र संदीप जी:

 

भावों के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 30, 2013 at 7:52pm

  

मोती-से उस पल को हथेली में रख कर
देखता रहा, देखता रहा, देर तक सोचता रहा
कि तुम्हारी ज़िन्दगी का वह समानान्तर पल भी
जिसको तुमने उस समय
अपने आँचल के कोने से बाँध कर, सम्हाल कर,
मुझको इतना सम्मान दिया था, वह पल------सुंदर अहसास का आपका वह पल वाकई प्राण पल से कम नहीं हो सकता

था | निश्चित ही आपने उसे अन्तमन में सहेज कर रखा होगा | रचना में प्रस्तुत अभिव्यक्ति तो यही बताती है | उस सहेज कर रखे पल के लिए और उसे प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई श्री विजय निकोरे जी

Comment by ram shiromani pathak on March 30, 2013 at 7:01pm

बहुत खूबसूरती से मन के भावों को पिरोया है सर जी .................बधाई हो

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 30, 2013 at 5:16pm

बहुत खूबसूरती से मन के भावों को पिरोया है सर जी .................बधाई हो

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