For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

            सृष्टि की महत्त्वपूर्ण रचना है नारी । यदि नारी नहीं होती तो आज हम इस सम्पूर्ण सृष्टि की कल्पना करने में भी असमर्थ होते । इस सृष्टि के विकास में नारी का महत्त्वपूर्ण योगदान है । वह मानव जीवन की संचालिका और मूलाधार है । मानव-जीवन उसके अनेक रूपों और उत्तरदायित्वों से भरा पड़ा है । वह माँ है, बहिन है, पत्नी है, प्रेयसी है, पुत्री है और कहीं-कहीं प्रेरणास्त्रोत भी है । यदि नारी अपने प्रेम और सौन्दर्य से मानव-जीवन को सिंचित करती है तो वहीं वह जीवन के कठोर पथ पर अविचलित होकर आगे बढ़ते हुए दूसरों को प्रेरित कर उनका मार्गदर्शन करते हुए उन्हें जीवन-पथ पर आगे बढ़ाती है । वास्तव में नारी एक श्रेष्ठ शक्ति है, जो अपने बल पर जीवन को सरस और सफल बनाने में समर्थ है । नारी-शक्ति के अभाव में हम इस पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते । संभवतः इसी कारण कहा गया है -
           'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता' अर्थात जहाँ नारी की पूजा की जाती है, वहीं देवता निवास करते हैं ।
प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में नारी को पुरूष के समकक्ष स्थान और सम्माननीय पद प्राप्त हुआ है । वैदिक काल नारी के सम्मान एवं गौरव का स्वर्णिम युग था, किन्तु विदेशियों के निरंतर भारतीय समाज में घुलने -मिलने के कारण उनकी चलाई गयी पर्दा-प्रथाओं ने भारतीय नारी की स्वतंत्रता को बंदी बना लिया और साथ ही नारी की गौरवपूर्ण छवि एवं उसके स्वतंत्र अस्तित्त्व का भी नाश हो गया । तब उसे पुरूष प्रधान समाज ने उपेक्षित समझकर स्वयं से निम्नस्तरीय माना,जो कि पूर्णतः असंगत था । इसी से द्रवित होकर सुकुमार कवि 'सुमित्रानंदन पन्त' ने कहा, 
           ''युग -युग की कारा से मुक्त करो नारी को,
           मुक्त करो हे मानव !जननी,सखी प्यारी को।''
आज स्वयं को श्रेष्ठ मानकर सम्पूर्ण पुरूष वर्ग और हमारा समाज नारी की उपेक्षा तथा उसका शोषण कर रहा है । चाहे घर हो,बाहर हो,परिवार हो,समाज हो, कार्यस्थल हो अथवा कोई भी स्थान हो, आज सभी जगह नारी शोषित हो रही है । प्रत्येक व्यक्ति आज उसे ठगना चाहता है, उसका अधिक से अधिक उपभोग करना चाहता है । किन्तु आज नारी को शोषित नहीं होना है, अपितु स्वयं को पहचानना है कि वह अबला नहीं है, सबला है । मात्र उपभोग के योग्य वास्तु नहीं है, वरन इस सृष्टि के विकास की सहयोगिनी है । आज वह अस्सहाय नहीं अपितु एक शक्तिपुंज है, जो समय पड़ने पर अपनी शक्ति से बड़े से बड़े कार्य को सिद्ध कर सकती है और चाहे तो उस कार्य के परिणाम को कभी भी नष्ट कर सकती है । आज नारी को अपनी शक्ति को पहचान कर मानव जीवन में अपनी सार्थकता 'प्रसाद जी' की इन पंक्तियों के समान अक्षरशः सिद्ध करनी है -
          ''नारी तुम केवल श्रद्दा हो,विश्वास -रजत -नभ -पग - तल में।
          पीयूष -स्त्रोत -सी बहा करो जीवन के सुन्दर -समतल में।।''

  •            'सावित्री राठौर '

[विश्व महिला दिवस के उपलक्ष्य में एक लेख ]
            [मौलिक एवं अप्रकाशित ]


Views: 1154

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on March 15, 2013 at 5:12pm

डॉ स्वर्ण जी ,आभार !  आपने सच कहा, आज नारी को अपने अस्तित्त्व की ही खोज करनी है और स्वयं को सबला भी मानना है और बनाना भी है,तभी हमारे राष्ट्र का,हमारे समाज का उत्थान हो सकेगा।

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 12:17pm

प्रस्तुत भावपूरण आलेख में आज की  नारी के  स्वतंत्र अस्तित्त्व तलाश और नारी शक्ति में आप का द्रिड विश्वाश 

 कि वह अबला नहीं है, सबला है । मात्र उपभोग के योग्य वास्तु नहीं है,
अति उत्तम Savitri ji
Comment by Savitri Rathore on March 11, 2013 at 5:38pm

आदरणीय मंजरी जी,विजय जी,राम शिरोमणि जी ,आशा जी एवं लक्ष्मण प्रसाद जी  सादर प्रणाम!आप सभी के शब्द मेरा उत्साहवर्धन करते हैं और मुझे अनवरत लेखन को प्रेरित करते हैं।आप सभी का बहुत -बहुत धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 11, 2013 at 1:17pm

 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'

  ''युग -युग की कारा से मुक्त करो नारी को,मुक्त करो हे मानव !जननी,सखी प्यारी को।''सुमित्रानंदन पन्त'

''नारी तुम केवल श्रद्दा हो,विश्वास -रजत -नभ -पग - तल में।
पीयूष -स्त्रोत -सी बहा करो जीवन के सुन्दर -समतल में।।'' जयशंकर प्रसाद - यही सब कुछ नारी-

शक्ति का सार है, बताने के लिए, नहिला दिवस पर अस्सास कराने के लिए हार्दिक बधाई 

आदरणीया सावित्री राठौर जी 

Comment by asha pandey ojha on March 9, 2013 at 9:16pm

mushil hai rahen magar aasaan bana denge .. kadam us housle se badhegen ab  gagan ko bhi jhooka lenge .. sartk aalekh naaree ki pida ko abhivykt karta hua

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2013 at 7:50pm

बहन सावित्री राठोर जी.........बहुत ही अच्छा लेख है।

Comment by vijay nikore on March 8, 2013 at 11:44pm

आदरणीया सावित्री जी:

 

बहुत ही अच्छा लेख है।

 

''युग -युग की कारा से मुक्त करो नारी को"

 

यह एक पंक्ति बहुत कुछ कह रही है,

हम सभी को, विषेशकर पुरुषों को

कुछ करने को ललकार रही है।

 

बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by mrs manjari pandey on March 8, 2013 at 10:10pm

बहन सावित्री राठोर जी समसामयिक अच्छा  लेख रहा बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
5 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service