आज इतनी जल्दी क्लिनिक बंद कर के कैसे आ गए डॉक्टर साहब निशा ने दरवाज़ा खोलते ही अपने पति से पूछा|डॉक्टर अरुण बोले आज एक ऐसी पेशेंट आई जो तीन बेटियों की माँ थी और चौथी बार गर्भवती थी बोली डॉक्टर साहब मुझे गर्भ से ही एहसास हो रहा है कि ये उस कमीने का होने वाला बीज लड़का ही है जो मुझे नही चाहिए मैं नही चाहती कि कल वो भी किसी की बेटी पर उतने ही जुल्म ढाये जो इसके बाप ने मेरे और मेरी बेटियों के ऊपर ढाये|और हैरानी की बात ये थी कि वो सच ही कह रही थी उसके गर्भ में लड़का ही था,और मैं नियम क़ानून से बंधा उसकी कोई मदद ना कर सका|बस तब से अपने आप को अस्वस्थ महसूस कर रहा हूँ इस लिए सब कुछ बंद कर के आया हूँ ,जल्दी से चाय पिला दो तो आराम करूँ,और ये सब सुनकर निशा निशब्द,यंत्रवत अपने गर्भ पर हाथ फिराती हुई किचन की और चल दी|
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हार्दिक आभार वेदिका जी ये सच है किसी स्त्री के लिए ऐसा कदम उठाना आसान नही है हालात हिम्मत दे देते हैं|
आदरणीय प्रदीप कुमार जी हार्दिक आभार आपका कहानी के मर्म में झाँकने की कोशिश की है आपने मेरा इशारा भी इसी तरफ़ है,अपने पति की बात सुनकर एक अनजाना भय महसूस करती है ,बाकी पाठकों की अपनी- अपनी राय हो सकती है|
राम शिरोमणि जी हार्दिक आभार आपका|
धारणा इंसान से क्या नही करवा लेती|अच्छी लघुकथा आदरणीया rajesh kumari जी!
शुभकामनाये
सादर वेदिका
और ये सब सुनकर निशा निशब्द,यंत्रवत अपने गर्भ पर हाथ फिराती हुई किचन की और चल दी|
क्या निशा भी पुत्र नहीं चाहती
आदरणीय राजेश कुमारी जी
सादर
आदरणीया राजेश कुमारी जी बहोत ही बढ़िया लघु कथा......
मै तो बार बार पढ़े जा रहा हूँ ...प्राणाम सहित हार्दिक बधाई
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