For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुरीतियों को मिटाकर परिवर्तन लाना है।

इस चराचर जगत में परिवर्तन तो होना ही है। अगर परिवर्तन नहीं होगा तो सँसार चक्र का पहिया रुक जाएगा। परिवर्तन ही संसार को गतिमान बनाए रखता है। जिस प्रकार एक जगह पङा हुआ लोहे का मजबूत सरिया जंग लगने से खत्म हो जाता है उसी प्रकार बिना परिवर्तन के संसार भी खत्म हो जाएगा। इसलिए हमें पता है कि हम बहुत कुछ नहीं कर सकते पर फिर भी घङे की एक बूँद तो जरुर बन ही सकते हैं।

परिवर्तन के लिए बहुत कुछ खोना पङता है और बहुत कम फल मिलता है। प्राचीन रुढियों को तोङकर नयी व्यवस्थाएँ अपनानी होंगी जो समय के साथ चलने का आभास कराए। लेकिन रुढियों में हम उन्हीं रुढियों को तोङें जो हमारे विकास में बाधा बनें, हमें उन रुढियों या रीति-रिवाजों को छोङने की कतई आवश्यकता नहीं है जो हमारे विकास में बाधा नहीं बनती हों। जिन रीति-रिवाजों से हमारा अस्तित्त्व और दैनिक कार्य जुङे हैं हमें उनमें परिवर्तन लाने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। परिवर्तन हमें उन्हीं रुढियों में लाना है जिनकी आज के समय में जरुरत ना हो और जो एक अनावश्यक खर्च और समय खराब करने का कारण बनते हों।

राजस्थान में बेटे के जन्म पर "थाल बजाना", फिर उसके नाना को उसका "छुछक" करना जिसमें बहुत सा खर्च होता है। "छुछक" में नाना को बच्चे के लिए चाँदी के कङे, बच्चे के कपङे, अपनी बेटी के लिए कपङों के साथ साथ जमाई के पूरे परिवार को कुछ ना कुछ देना होता है जिसका खर्च आज के समय में 60000 के ऊपर पङता है। अगर यही पैसा वो अपने परिवार या घर पर खर्च करे तो अच्छा मकान बन जाए या बेटे का एक साल का पढाई का खर्च निकलता है।
अगर बच्चे के जन्म की खुशी है तो बाप दादा खर्च करे। इसमें मामा और नाना का क्या लेना देना। मामा के लिए एक "भात" ही रहना चाहिए जिसे भरना वो अपना फर्ज समझता है। जब लङका लङकी एक समान है तो खर्च करने के लिए सिर्फ लङका ही क्यों?
थाल बजाने के लिए सिर्फ लङका ही क्यों?
अगर लङके के जन्म पर "सिरधोवन" करना जरुरी है तो लङकी के जन्म पर "सिरधोवन" क्यों जरुरी नहीं?
बेटे के जन्म पर नाना के लिए "छुछक" क्यों जरुरी हो?
ये कुछ सवाल हैं जिन्हें आज की शिक्षित नौजवान पीढी को हल करना है।

ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों में इस रिवाज को हर कोई निभाता है। आजकल लोगों नें कमाई का ये एक और जरिया निकाला है। बच्चे के जन्म पर "सिरधोवन" के उपलक्ष में पार्टी दी जाती है जिसमें लगभग पूरे गाँव को न्यौता जाता है। इस न्यौते में जो भी आता है उससे सहयोग के रुप में "बान" लिया जाता है।
अरे मैं तो कहता हूँ कि जब जेब में रुपये नहीं है तो पार्टी क्यों कर रहे हो?
अगर पार्टी ही करनी है तो अपने पैसे से करो। दूसरों पर क्यों निर्भर रहते हो?
मैँने तो अपने घर पर कह दिया है कि किसी को भी "सिरधोवन" की पार्टी में नहीं जाना है और न ही खुद ऐसे किसी कार्यक्रम को करेंगे।

पहले क्या होता था कि जब शादी की खुशी मनायी जाती थी तो गरीब के पास इतना रुपया नहीं होता था कि किसी को इस खुशी के मौके पर शामिल कर लें, इसलिए महाजन के कर्ज से बचाने के लिए लोग उन्हें थोङा थोङा सहयोग देते थे जिसे "बान" कहा जाता है। बान को मैं विवाह की पार्टी के लिए तो अच्छा मानता हूँ पर "सिरधोवन" के लिए नहीं।

दूसरी गलत रिवाज "औसर" की है। इसी मौके पर "औढावणी" भी ली जाती है। जब कोई बुढ्ढा व्यक्ति मर जाता है तो बारह दिन तक सभी शौक जताने आने वाले रिश्तेदारों को मिठाई खिलायी जाती है और अंतिम यानी बारहवें दिन पूरे गाँव को न्यौता जाता है जिसमें पूरा खर्च लगभग एक लाख तक पङता है। आए हुए रिश्तेदारों को कपङे और चादर दिये जाते हैं उसका भी 20000 तक पङता है। यानी कुल मिलाकर सवा या डेढ लाख तक खर्च आता है।
पूरे जीवनभर बुढ्ढे को जो खाना तक नहीं देते वो भी उसके मरने पर खर्च करते हैं। बारहवें दिन "औढावणी" की रस्म होती है जिसमें घर के सभी सदस्यों को मरने वाले के ससुराल वालों की तरफ से नये कपङे पहनाए जाते हैं। जमाइयों को भी चादर ओढायी जाती है। जिसमें अन्य खर्चों को भी जोङकर साठ सत्तर हजार तक बैठ जाता है।
"ओढावणी" तो हमारे क्षेत्र में लगभग खत्म हो गयी है पर "औसर" का रिवाज अभी तक जस का तस है। इस कुरीति को खत्म करने के लिए युवाओं को ही आगे आना होगा।

एक कुरीति है "दहेज प्रथा" की। ये कुरीति पूरे देशभर मेँ प्रचलित है। जितना ही इसको खत्म करने के लिए प्रचार किया जाता है ये उतनी ही और बढती है। "दहेज प्रथा" सबसे पुरानी और सबसे ज्यादा कर्जदायक प्रथा है। एक गरीब आदमी जब अपनी बेटी का ब्याह करता है तो उसे दहेज पूरा करने के लिए कर्ज लेना पङता है जिसमें वो ताउम्र डूबा रहता है। आजकल सोना चाँदी इतने महँगे हो गये हैं कि थोङा सा लेने पर भी बहुत सा रुपया देना पङता है। कम से कम तीन तोला सोना तो हर कोई देना चाहता है जिसकी कीमत आज एक लाख तक बैठती है। अन्य सामानों में टीवी, कूलर, फ्रीज, प्रेस, मधानी, डबल बेड, कुर्सी मेज, चादरें व बिस्तर आदि दिये जाते हैं। मोटरसाईकल तो आम बात हो गयी है। ये सब सामान देकर बेटी के मन में घर से अलग कर देने का भाव तो पहले ही भर जाता है तो बाद में संयुक्त परिवार भला कैसे रहे? परिवार तो टूटेगा ही। कहते हैं कि बेटी को घर से खाली हाथ ससुराल नहीं भेजा जाता। क्यों भाई, क्या वो ऊपर से हाथ भरके आयी थी?
आजकल तो ज्यादातर लोक दिखायी दहेज ज्यादा दिया जाता है। चाहे इसके लिए वो कितना ही कर्ज में डूब जाए। आजकल दहेज माँगने वाले भी कम हो गये हैं पर वो भी ऊपर से। अन्दर से तो यही चाहते हैं कि ज्यादा दहेज मिले ताकि घर पर सामान ना लाना पङे और नकदी भी अच्छी मिल जाए। देने वाला भी कहता यही है कि दहेज नहीं देंगे, सिर्फ लङकी देंगे। पर जब शादी होती है तो अच्छा सा दहेज देते हैं। अगर इतना दहेज बिना माँगे मिल जाए तो फिर माँगने की जहमत कौन उठाए?

इसलिए मेरी सभी युवाओं से अपील है कि इन सब कुप्रथाओं को मिटाकर एक नये युग का सूत्रपात करना चाहिए ताकि भावी पीढी बिना किसी दबाव के अपना विकास कर सकें।
-सतवीर वर्मा 'बिरकाळी'
(अप्रकाशित/मौ॰)

Views: 842

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 5, 2013 at 7:54pm
आ॰ वेदिका जी, आपकी सकारात्मक और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए धन्यवाद। इन कुरीतियों को मिटाने के लिए युवाओं को बङों की सहायता की अपेक्षा है। अगर बङे चाहें तो मिलजुलकर इन कुरीतियों को जङ से मिटाया जा सकता है।
Comment by वेदिका on March 4, 2013 at 11:57pm

आदरणीय  सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' जी ! लिख बहुत सटीक लिखा है आपने । जरुरत तो बहुत है परिवर्तन लाने की , लेकिन ये हर इन्सान को व्यक्तिगत तौर  पर ही सोचना होगा , तभी बात बनेगी ।

शुभकामनायें 

सादर वेदिका 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service