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जय अम्बे जय मातु भवानी

जय जननी जय जगकल्यानी

जय बगुला जय विन्ध्यवासिनी

जय वैष्णव जय सिंहवाहिनी

 

कण कण में है वास तिहारा

तुम जग की हो पालनहारा

करूणा की हो सागर माता

तू सबकी है भाग्य विधाता

 

दूजा को है तुम सम ज्ञानी

मैया तू जग की महरानी

हम सब माता बालक तेरे

हित अनहित सब है वश तेरे

 

शरण पड़े माता हम तोरे

विनती करूं मात कर जोरे

इन चरणों में शीश नवावें

तेरी महिमा नित प्रति गावें

               - बृजेश नीरज

 

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Comment by बृजेश नीरज on March 4, 2013 at 5:48pm

संदीप जी आपका आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 4, 2013 at 5:47pm

आदरणीय सौरभ जी,
आपका बहुत आभार! आपकी इस टिप्पणी से लगता है कि मेरा पहला प्रयास कुछ हद तक सफल रहा। आपने जो निर्देश दिए हैं उनका भविष्य में पालन करने का प्रयास करूंगा। मुझे भी लगता है कि रचना को कई बार पढ़ने के बावजूद अति उत्साह में इस पंक्ति की गेयता पर मैंने ध्यान नहीं दिया। आभार!
सादर!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 4, 2013 at 12:54pm

इन भक्ति बहाव से भारी चौपाइयो के लिए बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 4, 2013 at 1:38am

विनती करूं मात कर जोरे

इस पंक्ति को छोड़ कर मात्रा और गेयता का सुन्दर निर्वहन हुआ है.

काव्य रचना के आधारभूत नियमों के अनुसार एक बात ध्यातव्य है, कि हम पंक्तियों का शब्द-संयोजन सम और विषम के बाद विषम शब्द रखने का अभ्यास करें.

उपरोक्त पंक्ति में --

विनती (सम) करूं (विषम) आया है और पुनः मात (विषम) के बाद कर (सम) शब्द आया है. यानि उपरोक्त आधारभूत नियम का उल्लंघन.  बस  यही गेयता के टूटने का सबसे बड़ा कारण.

इस पंक्ति को यों लिखा जाय - मात करूँ विनती कर जोरे  तो समस्या का समाधान होता दीखता है.

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 10:08pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका आभार! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 3, 2013 at 10:03pm

सुंदर माँ स्तुति चौपाइयाँ हेतु बधाई आपको| 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 3, 2013 at 7:02pm

जय आंबे जय मातु भवानी,

शीश नवा करे विनती, जय कल्याणी 

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 1:14pm

आदरणीय रविकर जी,
आपको सादर प्रणाम!

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 1:13pm

आदरणीय पवन जी
आपका आभार! जय अम्बे!

Comment by बृजेश नीरज on March 3, 2013 at 1:12pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी आपका आभार!

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