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जब घिर जाता है तिमिर में,
शून्य सलीब पर

टंग जाता है तन
और मुक्ति चाहता है मन
माँगती हूँ परिदों से
पंख उधार
और कल्पना की पराकाष्ठा
 छूने निकल जाती हूँ
मलय के संग
उडती हुई पतझड़ के
पत्ते की तरह
जुड़ जाती हूँ
बकुल श्रंखला में
चुपके से,
मेघों के साथ लुकाछिपी
का खेल खलते हुए
जब थक जाती हूँ
फिर बूंदों के संग
लुढ़कती हुई
चली आती हूँ धरा पर
वापस
अपने आवरण में||

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Comment by rajesh kumari on March 1, 2013 at 9:46am

आदरणीय मंजरी पांडेय जी रचना पर आपकी सराहना हेतु हार्दिक आभार 

Comment by mrs manjari pandey on February 28, 2013 at 11:32pm

  आदरणीया राजेश  कुमारी जी बधाई। " आवरण " में आपने दिल का अनावरण किया है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 28, 2013 at 1:48pm

आदरणीय पवन अम्बा जी आपको रचना पसंद आई हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 28, 2013 at 1:45pm

प्रिय सीमा जी रचना पर आपकी  उपस्थिति और सराहना पाकर मन गद-गद हो गया दिल से शुक्रिया आपका|

Comment by pawan amba on February 27, 2013 at 4:31pm

जब थक जाती हूँ 
फिर बूंदों के संग 
लुढ़कती हुई 
चली आती हूँ धरा पर 
वापस 
अपने आवरण में||..bahut hi khub rachnaa...Rajesh Kumari ji...

Comment by seema agrawal on February 27, 2013 at 12:06pm

जब थक जाती हूँ 
फिर बूंदों के संग 
लुढ़कती हुई 
चली आती हूँ धरा पर 
वापस 
अपने आवरण में||...आहा हा  राजेश जी इन पंक्तियों ने तो मन मगन कर दिया ...इतना खूबसूरत और दार्शनिक समापन हुआ रचना का कि पठन  सार्थक हो गया ...ढेरों बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2013 at 12:02pm

राजेश कुमार झा जी इस उत्साह वर्धनीय  सराहना हेतु हार्दिक आभार 

Comment by राजेश 'मृदु' on February 26, 2013 at 11:15am

एक सार्वभौम संवेदना को आपने जिस सुंदरता से शब्‍द दिए हैं वह निश्चित रूप से अनुकरणीय है, बहुत बधाई इस रचना पर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 25, 2013 at 10:36pm

विंध्येश्वरि प्रसाद  जी आपको रचना पसंद आई मेरी कल्पना की उड़ान को दिल से महसूस किया  हार्दिक आभार आपका सच में परिंदों को देख् कर बहुत बार कल्पना करती हूँ की काश हमे भी पंख मिलते और हम भी उच्च गगन में उड़ आते 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 25, 2013 at 10:33pm

राम शिरोमणि पाठक जी   आपको रचना पसंद आई  हार्दिक आभार आपका

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