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जागतीआँखें .. टूटते ख्वाब...

पत्थरों के शहर मे दिल ही टूटते थे अभी,
भरम भी टूट गया अब के, अच्छा ही हुआ..
दोस्ती लफ्ज़ से नफ़रत थी हमको पहले भी,
रहा सहा यकीं भी उठ गया अच्छा ही हुआ..
खुली थी आँखें फिर भी नींद आ गयी जाने,
तुमने झकझोर के जगा दिया अच्छा ही हुआ..
ज़मीन होती क़दम तले तो भला गिरते क्यों,
हवा मे उड़ने का अंजाम मिला अच्छा ही हुआ..
ख्वाब था या के हादसा था जो गुज़र ही गया,
यकीं से अपने यकीं उठ गया अच्छा ही हुआ..
यूँ भी मुर्दे पे सौ मन मिट्टी थी पहले से,
एक मन और पड़ गयी तो क्या , अच्छा ही हुआ..
किसी को मीत अब कहना तो क़दर भी करना,
हमारे साथ खैर जो किया अच्छा ही हुआ..
दराज़ उम्र भला होती क्या दुआओं से,
दुआ की भीख न दी तुमने अच्छा ही हुआ......

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Comment

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Comment by Sarita Sinha on February 14, 2013 at 10:53pm

बागी जी नमस्कार,इंसान का दिल भी कंप्यूटर ही है,रैंडम एक्सेस कर बैठता है..

Comment by upasna siag on February 14, 2013 at 6:13pm

यूँ भी मुर्दे पे सौ मन मिट्टी थी पहले से,
एक मन और पड़ गयी तो क्या , अच्छा ही हुआ.......बहुत मार्मिक 

Comment by वेदिका on February 14, 2013 at 3:34pm

तुमने झकझोर के जगा दिया अच्छा ही हुआ..!!!

सरल भाषा में मनोभाव व्य्क्तिक्र्ण !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 14, 2013 at 1:45pm

ज़मीन होती क़दम तले तो भला गिरते क्यों,
हवा मे उड़ने का अंजाम मिला अच्छा ही हुआ waah bahut sundar 

sundar rachna ke liye badhai aadarneeyaa 

Comment by Parveen Malik on February 14, 2013 at 10:35am

किसने किया घायल इस नादाँ दिल को ,

नाम नहीं लिया अच्छा ही हुआ  !

 मैडम जी रचना में इतना दर्द क्यूँ क्यूँ क्यूँ .... 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 14, 2013 at 10:09am

//दोस्ती लफ्ज़ से नफ़रत थी हमको पहले भी,
रहा सहा यकीं भी उठ गया अच्छा ही हुआ..//

रचना एकाएक दर्द की गहराइयों में धकेल देती है , किस मनोभाव के बीच यह रचना अंकुरित हुई होगी, आह !! सुन्दर अभिव्यक्ति , बहुत बहुत बधाई आदरणीया सरिता सिन्हा जी ।

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