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मत्तगयंद सवैया :-
================
आदि अनादि अखंड अगॊचर, मॊह न क्षॊभ न काम न माया !!
तॆज त्रि-खंड प्रचंड अलौकिक,ब्याधि अगाधि दुखादि मिटाया !!
संत-अनंत न जानि सकॆ कछु,वारिहि बीच ब्रम्हांण्ड-निकाया !!
भाँषत  वॆद  पुराण  सुधी  जनि, पार न  काहु  रती भर पाया !!
===========================================

   ( मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by sanjiv verma 'salil' on January 21, 2013 at 5:12pm

राज जी
सुगठित छन्द हेतु बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2013 at 5:09pm

बहुत खूब उत्कृष्ट प्रस्तुति हेतु बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 19, 2013 at 3:13pm

बेहतरीन कविराज बेहतरीन, बहुत ही खुबसूरत सवैया रची है, भाव, कथ्य, शिल्प, सम्प्रेषण सभी बढ़िया , बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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