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तुम्हारे साथ ....

ओ तरुणी
मेरे आंसू
तेरे दुख
कम नहीं कर पाएँगे
मेरी संवेदनाएँ
तेरे जख्म नहीं भर पायेंगे 
तार -तार हैं सपने तेरे
रोम रोम में जहर भर गए
कुंठित होगा मन का कोना
घृणा के ज्वार पे तुम सवार
बदले की आग में भी जलोगी
ना कुछ करने की विवशता

आत्महत्या के लिए प्रेरित करेगी

ओ मेरी अनजान सखी 
एक विनती
मेरी बस सुन लो
आसुंओ की काल कोठरी में
जीवन मत खोना
गमो की पोटली मत ढोना
सच मानो
ईश्वर ने तुम्हें गर
नरक दिया है तो
स्वर्ग का रास्ता भी
कंही खुला रखा होगा
बस
हिम्मत मत हारना
तप कर तुझे

सोना बनना है


ओ दामिनी
कल तक
जो भी सपने थे तेरे
भूल उसे अब
आगे बढ़ना होगा
लाचार तुम नहीं
व्यवस्था पंगु है
पहचान अपनी शक्ति को
तुझे ध्रुव तारा सा चमकना होगा
पोंछ कर सारी तस्वीर
दे अपनी तरुणाई को
नया आधार
चुन नए पथ को
रख मजबूती से
अपने कदमो को 
नाप नया आकाश 
तुम जानो या ना जानो
मानो या ना मानो
हमारी दुआएं
है तुम्हारे आस पास 
तुम्हारे  साथ  /

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on December 24, 2012 at 5:41pm

नमस्कार अनंत जी .. आपका बहुत-2 धन्यवाद / समय देने और विचार करने केलिए . आभार

Comment by MAHIMA SHREE on December 24, 2012 at 5:39pm

आपका स्वागत है आदरणीय श्याम जी .. धन्यवाद

Comment by MAHIMA SHREE on December 24, 2012 at 5:38pm

आदरणीया प्राची जी , नमस्कार

आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया .रचना के भाव् को अनुमोदन प्रदान कर रहा  है / आप सुधीजनों का स्नेह बना रहे यही कामना है / आपकी हार्दिक आभारी हूँ / 

Comment by MAHIMA SHREE on December 24, 2012 at 4:42pm

आदरणीय  विजय निकोर  सर , सादर नमस्कार

आपके स्नेहयुक्त विचार को जान कर बहुत अपनापन लगा / इतनी दूर होकर भी मातृभूमि से आपका जुडाव , और यंहा की समस्यायों के प्रति चिंता वन्दनीय है / आपसे सहमत हूँ / जनता अभी जागरूकता तो दिखा रही है पर बस चिंता यही है अल्पकालिक नहीं हो . भविष्य के लिए अच्छे परिणाम निकले तभी सार्थकता है / आपकी  ह्रदय से आभारी हूँ / स्नेह बनाए रखे  

Comment by MAHIMA SHREE on December 24, 2012 at 4:33pm

आदरणीया प्रदीप सर , सादर नमस्कार

भावो के साथ जुडाव आपका हुआ , मन थोडा हल्का हुआ  और हमसब की प्रार्थना फलीभूत होगी . विश्वास है / हार्दिक आभार /

Comment by MAHIMA SHREE on December 24, 2012 at 4:13pm

आदरणीया सीमा जी  बहुत आभारी हूँ ..

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 24, 2012 at 11:11am

महिमा श्री जी बेहद गहन रचना है, न चाहते हुए भी बहुत कुछ सोंचने को मजबूर करती बेहतरीन प्रस्तुति बधाई स्वीकारें

Comment by Shyam Narain Verma on December 24, 2012 at 10:02am

 बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 24, 2012 at 9:38am

पाशविक दुर्व्यवहार से आत्मविश्वास विहीन हुई अपनी ही एक अनजानी परन्तु अभिन्न बहिन के दर्द को आत्मसात कर नकारात्मकता के मकड़ जाल से बाहर निकलने को प्रेरित करती रचना के लिए हार्दिक आभार प्रिय  महिमा जी 

Comment by vijay nikore on December 23, 2012 at 11:14pm

आदरणीया महिमा जी:

आपकी यह सशक्त रचना पढ़ कर मन उदास भी हुआ और फिर उसको

धीरज भी मिला। अच्छा है कि जनता की आवाज़ में इस समय दम है,

क्रोध है, रोष है ... शायद मंद-बुद्धि के खराब लोगों में परिवर्तन आए।

ईश्वर ने तुम्हें गर
नरक दिया है तो
स्वर्ग का रास्ता भी
कंही खुला रखा होगा

आशाप्रद  भावों के लिए और अच्छी कविता के लिए अनेकानेक बधाई।

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

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