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न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये

 

न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये

किस बात पे चर्चे हों जाएँ ,फिर कैसा फ़साना हो जाये  

कागज़ पे लिख लिख कर तुम  कोई सन्देशा न भेजो 
कहीं नेकी के फितरत में नहीं दुश्मन ज़माना  हो जाये 
 
न जन्नत की कोई ख्वाइश हो 
न बेअदबी फरमाइश हो 
 
हो मन में उजाला ऐसा कि रब का आना हो जाये 
न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये
 
हर पल  गुज़रे   हैं  सदियों से
हम जुड़ते जाते कड़ियों  से
 
जब यादों के कुछ फूल खिले तो ताना बाना हो जाये 
न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये
 
तू भोर का सूरज बन जाना ,
या रात का चंदा हो जाना 
 
मत भूलना अपना अक्स कभी,चाहे जुर्माना हो जाये 
न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये
 
जीना अपनी आवाजों में ,जीना अपनी अधिकारों में 
भले रंग बदल ले मौसम और अंदाज़ पुराना हो जाये 
न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये
 
जब देखूं नील आँखों से आँखों में तुम्हारी खुशियों को 
तो पन्ना पन्ना महक उठे ,मन जैसे  दीवाना हो जाये 
न जाने किस सागर में कश्ती का ठिकाना हो जाये

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Comment by Nilansh on June 15, 2012 at 7:54pm

bahut aabhaar aadarniya surya bhai

aapka protsaahan mila

uska bahut aabhar

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 14, 2012 at 11:47pm

नीलांश भाई बहुत सुंदर रचना आपने प्रस्तुत की है । क्षमा चाहूँगा पता नहीं कैसे इसको मैं पढ़ नहीं पाया। बहुत सुंदर लगी ये रचना। आपको बहुत बहुत बधाई॥

Comment by Nilansh on June 11, 2012 at 7:11pm

bahut aabhaar aadarniya pradeep ji

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 11, 2012 at 10:23am

सुन्दर भाव, बधाई आदरणीय नीलांश जी, सादर 

Comment by Nilansh on June 11, 2012 at 6:46am

aapke sneh ka bahut aabhaari hoon aadarniya ram krishna ji

Comment by Ram Krishna Khurana on June 10, 2012 at 10:25pm

बहुत अच्छी कविता है ! 

राम कृष्ण खुराना 
Comment by Nilansh on June 10, 2012 at 8:06pm

bahut aabhar yogesh ji

Comment by yogesh shivhare on June 10, 2012 at 5:13pm
जीना अपनी आवाजों में ,जीना अपनी अधिकारों में 
भले रंग बदल ले मौसम और अंदाज़ पुराना हो जाये .
 
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..ह्रदय छू गई ,नीलांश जी .बधाई
 
 

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