For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रिटायरमेंट ( लघु कथा )

रिटायरमेंट ( लघु कथा )

शर्मा जी, लेखाधिकारी  अपनी उदार प्रवर्ति एवं मिलनसारिता के मामले में सदैव अग्रणी रहे  .खुशी हो या किसी पे दुःख मुसीबत, बस इन्हें पता भर लग जाए. जी जान से सेवा में जुट जाते . चाय पीना और पिलाना उनकी हाबी रही . सड़क हो या दफ्तर कोई परिचित मिल भर जाए. फिर क्या एक प्याला चाय हो जाये. मैं तो इनसे नजरे छुपा के निकल जाता कि अनावश्यक  व्ययभार न बढे. 
मेरा तबादला अन्य जनपद में होने के कारण काफी वर्षों से इनसे मुलाकात नहीं हुई. स्मृति में इनकी याद भी  हलकी पड़ गयी. 
दिवाली से पहले घर की पुताई कराने  के प्रयोजन से प्रातः मजदूर लेने निकला. रास्ता जाम होने के कारण मार्ग बदलना पड़ा. याद  आया की शर्मा जी इसी कोलोनी में रहते हैं. स्वार्थी मन एक तरफ चाह रहा था कि इनके दर्शन कर लिए जाएँ, दूसरी तरफ ये चिंता थी कि देर से मजदूर लेकर पहुंचा तो काम प्रभावित होगा. इसी उधेड़ बुन  में चला जा रहा था कि आवाज आई, वर्मा जी इतने सुबह सुबह कहाँ. स्कूटर के ब्रेक  स्वतः लग गए. शर्मा जी के चेहरे पर वो ही  चिर परिचित मुस्कान , अपनापन. वे लान में पौधों को पानी दे रहे थे .
जल्दी जल्दी आपने हाल चाल बताये और यात्रा का प्रयोजन बताया और मन ही मन सोच रहा था कि ये कहीं चाय पीने  का आग्रह न कर दें. शर्मा जी कहाँ चूकने वाले थे, उन्होंने घर में दो चाय  का हुक्म दे डाला. लान  में पड़ी कुर्सी पर मुझे बिठा दिया और खुद पौधों में पानी लगाते हुए घर परिवार , यार दोस्तों का हाल पूंछने लगे. समय बीतता गया मेरी बैचेनी बढ़ रही थी कि अब चला जाये. मेरी नजरों से शर्मा जी की  भी बैचेनी छिपी न रह सकी, उनकी आँखें घर के दरवाजे से चाय  के आने की प्रतीक्षा जो कर रही थी. पन्द्रह मिनट बीत गए और चाय नहीं आई तो मैने कहा अब काफी देर हो गयी है चाय कभी इत्मीनान से पी जायेगी, आज्ञा दीजिए. शर्मा जी ने पाइप नीचे  रखा , नल बंद किया और तपाक से बोले आइये वर्मा जी, यहीं पास में एक बढ़िया चाय बनाता है, वहीँ आपको पिलाता हूँ, आप भी याद रखेंगे  उसके स्वाद  को. सुबह की चाय मैं वहीँ पीता हूँ. 
शर्मा जी आप कब रिटायर हुए? 

Views: 791

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 25, 2012 at 4:33pm

आदरणीय बागी जी, 

सादर अभिवादन 

सब इसी विद्यालय की देन है.

आभार.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 25, 2012 at 4:32pm

आदरणीय लड़ीवाला जी 

सादर अभिवादन 

प्रोत्साहन हेतु आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 25, 2012 at 11:04am

आपकी इस कहानी को पढ़ कर कुछ देर चुपचाप बैठ गई हाथ की बोर्ड पर भी चल नहीं रहे थे इसी बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं की आपकी ये कथा दिल को किस तरह झकझोर देती है सामयिक है हर तीसरे घर में यह सीन मिल जाएगा बहुत कुछ गंभीरता से सोचने वाली स्थिति है बहरहाल बहुत बहुत बधाई आपको इस लघु कथा के लिए 

Comment by seema agrawal on October 25, 2012 at 12:29am

सोचने पर मजबूर करती हुयी कथा जो शायद कई घरों का सत्य है 

Comment by shalini kaushik on October 25, 2012 at 12:09am
Comment by UMASHANKER MISHRA on October 24, 2012 at 11:37pm

आदरणीय प्रदीप कुमार जी नमस्कार 

अत्यंत मार्मिक कहानी लगी मन में कहानी के

संदर्भ से जुड़े अनेक चित्र प्रस्तुत किये 

बहुत बढ़िया है 

आपके उत्तम स्वस्थ की कामना

एवं दशहरे की हार्दिक बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 6:53pm

//शर्मा जी आप कब रिटायर हुए? //
एक प्रश्न और पूरी लघुकथा का निहितार्थ सामने, वाह आदरणीय वाह, सचमुच इस लघुकथा में जान है, इस अभिव्यक्ति पर बधाई और दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई स्वीकार हो |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 24, 2012 at 5:25pm
 "आइये वर्मा जी, यहीं पास में एक बढ़िया चाय बनाता है, उसके स्वाद  को. सुबह की चाय मैं वहीँ पीता हूँ". 
सेवा-निवृत व्यक्ति मेरे कई साथियों का द्रश्य आपकी कघु कथा पढ़ते पढ़ते घूम गया जिन पर यह कहानी 
एकदम चरितार्थ हो रही है |  मुझे क्षणभर के लिए मेरे उन साथियों का सेवानिवृत बाद का समय झकझोर गया
ऐसी संवेदन शील कहानी के लिए हार्दिक बधाई  
  
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 24, 2012 at 4:57pm

परम आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी, 

सादर अभिवादन. 

मुझे हार्दिक प्रसन्नता है, गुरुदेव के आशीर्वचन प्राप्त हुए. शिल्प भी आजायेगा आप की कृपा से . 

कथा का सार यही है आदमी कितना असहाय हो जाता है, जीवन के अंतिम समय में. 

ये सत्य कथा है. मूल पात्र शर्मा जी न हो कर एक ईमानदार लेखाधिकारी दीक्षित जी  थे. उनके जीवन में ये अँधेरा नहीं आया. अंत में शर्मा जी की  व्यथा वास्तविक है.

और ये भी हो सकता है की कलमकार की क्या स्थिति वर्तमान में है. 

आभार. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 24, 2012 at 3:08pm

आदरणीय प्रदीपजी,  आपकी लघुकथा समाज/ परिवार के जिस रूप को दिखाती है वह संवेदना को झकझोर कर रख देती है. समय विशेष में एक उत्फुल्ल व्यक्तित्व भी कितना निरीह हो जाता है, यह देख-पढ़ कर आँखें भर आयीं. हर जगह तो नहीं परन्तु, कई-कई परिवारों की यह दुखती हुई सचाई है. यह कथा ऊपर से तो सामान्य सी दिखती है, लेकिन द्रुत प्रवेग लिये इस कथा की आखिरी पंक्ति झन्नाटेदार माहौल पैदा कर देती है. बहुत बढिया ताना-बाना बुना है आपने, आदरणीय.

शिल्प के तौर पर तो कुछ न कुछ होता रहेगा. और वह एक सतत प्रक्रिया है. लेकिन कथ्य के हिसाब से और कथ्य-संप्रेषण के हिसाब से यह बहुत सम्यक कथा बन पड़ी है. आपका स्वस्थ हो कर मंच पर पुनः सक्रिय होना बड़ा भला लग रहा है.

इस संवेदनशील कथा के लिये हृदय आपको बार-बार सादर आभार कह रहा है, आदरणीय प्रदीपजी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
2 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
6 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
22 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
23 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service