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हमने शेरों को ठिकाने दिये हैं
आज गीदड़ हमें डराने लगे हैं

जिनके हाथों में रहनुमाई दी थी
बस्तियाँ हमारी वो जलाने लगे हैं

जिन्हे धर्म का मतलब नहीं पता
लोग क़ाज़ी उन्हें बनाने लगे हैं

लूट-खसोट, धोखा जिनका ईमान
वो तहज़ीब हमको सिखाने लगे हैं 

जो आए तो थे ख़बर हमारी लेने
हौंसला देख ख़ुद लड़खड़ाने लगे हैं

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Comment

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Comment by नादिर ख़ान on October 10, 2012 at 11:08am

कृपया, भाई वीनस की जगह भाई वीनस जी पढ़ें लिखने में हुयी त्रुटि के लिए क्षमा चाहता हूँ  ।

Comment by नादिर ख़ान on October 10, 2012 at 11:05am

भाई वीनस आपकी दाद पाकर हम कृतज्ञ हुये 

आपका बहुत आभार ।

बहुत कोशिश कर रहे है सीखने की पर अभी भी वज्न,और बह्र मे अटक जाते हैं 

(आप हंसना मत कल ही पता चला की वज्न का माने मात्रा होता है)

कभी कभी टिप्स दे दिया कीजिये ताकि सीखने मे आसानी हो 

वैसे गज़ल की कक्षा में शामिल हो गए  हैं ।

openbooksonline के सभी  कार्यकारी सदस्यों का जीतना आभार व्यक्त करे कम है ।आप लोग,

हम जैसे गज़ल के अंगूठा छाप लोगों का मार्गदर्शन कर रहे है,   दिल से पुनः आभार ।

Comment by वीनस केसरी on October 10, 2012 at 2:27am

वाह वाह आदरणीय नादिर साहब समाज कि विसंगतियों को खूब रेखांकित किया आपने

जिनके हाथों में रहनुमाई दी थी
बस्तियाँ हमारी वो जलाने लगे हैं

जिन्हे धर्म का मतलब नहीं पता
लोग क़ाज़ी उन्हें बनाने लगे हैं

कथ्य की जितनी तारीफ़ करूं कम है
सादर

Comment by नादिर ख़ान on October 9, 2012 at 3:45pm

बहुत शुक्रिया संदीप जी

आभार।

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 9, 2012 at 1:05pm

वाह क्या बात है
बेहद खूबसूरत अंदाज
दाद क़ुबूल कीजिये

Comment by नादिर ख़ान on October 9, 2012 at 9:59am

बहुत शुक्रिया,एवं आभार  राजेश कुमारी जी ।

आप लोगों की दाद से लिखने की प्रेरणा मिलती है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 9, 2012 at 9:00am

नादिर खान जी एक अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें 

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 7:41pm

शुक्रिया आपकी ज़र्रानवाजी का. 

Comment by नादिर ख़ान on October 8, 2012 at 4:25pm

हौसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया राज़ भाई 

हमने गज़ल लिखना इसी साल से शुरू किया है 

पहले कविताएँ लिखा करते थे ।

इसलिये समझिए की गज़ल की अलिफ,बे  सीख रहे है 

उम्मीद है आप मार्गदर्शन बनाये रखेंगे ।

Comment by राज़ नवादवी on October 8, 2012 at 2:05pm

खूबसूरत मतला है-

//हमने शेरों को ठिकाने दिये हैं
आज गीदड़ हमें डराने लगे हैं//

बधाई हो. भाई नादिर साहेब.

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