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नतमस्तक हो 
श्रद्धानत हो 
निर्विकार हर भाव करें...
प्रश्नातीत हुए 
अपनों का 
शुद्ध मनस कर श्राद्ध करें l
.
स्थाई प्रतिक्रिया-
हीनता, ओढ़ 
अबोल जो बिम्ब हुए...
उनके ओजस 
की चादर, अदृश्य 
मगर, एहसास करें l
.
चेतन से
अवचेतन की
सीमा रेखाएं जुड़ती हैं...
स्पर्शबिन्दु 
सद्-भावों के
सद्-ऊर्जित कर सद्गात करें l
 .
नतमस्तक हो 
श्रद्धानत हो 
निर्विकार हर भाव करें...
प्रश्नातीत हुए 
अपनों का 
शुद्ध मनस कर श्राद्ध करें l
मेरे नानाजी (स्व० श्री मिलाप चंद जी ) को समर्पित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 12:24pm

रचना के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार आ. प्रदीप जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 1, 2012 at 3:44pm

निश्चित .

सादर बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 24, 2012 at 9:30am

यह पंक्तियाँ आपको पसंद आईं इस हेतु हार्दिक आभार आ. नादिर खान जी 

Comment by नादिर ख़ान on October 31, 2012 at 6:18pm

चेतन से

अवचेतन की
सीमा रेखाएं जुड़ती हैं...
स्पर्शबिन्दु 
सद्-भावों के
सद्-ऊर्जित कर सद्गात करें l
 
बहुत खूब कहा प्राची जी ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 4, 2012 at 10:57am

आपकी सराहना हेतु हार्दिक धन्यवाद आ. विनीता शुक्ला जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 4, 2012 at 10:56am

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी

Comment by Vinita Shukla on October 4, 2012 at 10:50am

बहुत सुन्दर और परिमार्जित भाषा - शैली का प्रयोग कर, आपने एक सार्थक आह्वान किया है. बधाई एवं साधुवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 4, 2012 at 10:37am

बहुत बढ़िया रचना श्राद्ध के अवसर पर ..वाह 

इन पंक्तियों ने दिल मोह लिया ----चेतन से
अवचेतन की
सीमा रेखाएं जुड़ती हैं...
स्पर्शबिन्दु 
सद्-भावों के
सद्-ऊर्जित कर सद्गात करें ..

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 3, 2012 at 10:10pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

आपको पितृ पक्ष पर लिखी गयी यह रचना संयत व सार्थक लगी, इससे मेरी लेखनी को मान व बल मिला है, इस हेतु हार्दिक आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 3, 2012 at 10:04pm

हार्दिक आभार आ. पियूष पन्त जी 

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