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खामोश आखर..

 

मूक रूदन
सहमे लब, खामोश आखर..
हृदय क्रंदित 
सूखी मरू सम, नयन गागर..
रिक्ततामय
शून्य विस्तृत, श्याम सागर..
क्षुद्र लोभन 
डाह विषमय, मनस अंतर..
नव्य चेतन 
सृजन स्नेहिल, बरसे जलधर..
स्वर्ण सम फिर 
दिव्य दमके, पूर्ण भूधर..

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 15, 2013 at 10:50am

रचना की सराहना व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर जी

Comment by vijay nikore on April 15, 2013 at 3:02am

दार्शनिक संकेतों से भरपूर, उज्जवल भाव।

पढ़ कर मन आनन्दित हुआ।

 

सादर,

विजय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 3, 2013 at 12:25pm

आपकी गुणग्राह्यता के लिए साधुवाद आ. प्रदीप जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 1, 2012 at 3:45pm

सिखने को मिलता है 

बधाई सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2012 at 12:29pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

आप तक रचनाओं का सूक्ष्म भी सहजता से पहुँच जाता है, इसलिए आपके द्वारा रचनाओं पर समीक्षा पाना सदैव ही नव ऊर्जा का संचार करता है, व लेखन उत्साह को बढाता है.... इस सूक्ष्म दृष्टि के साथ विवेचना कर बधाई सम्प्रेषण हेतु हार्दिक आभार .
मानव जीवन में व्याप्त एकाकीपन, डर, ख़ामोशी, रिक्तता, सबका मूल कारण इन्द्रिय ग्रस्त लोभन ही नज़र आता है... दिलों में निःस्वार्थ प्रेम ही नयी चेतना का संचार कर सकता है, जिससे सम्पूर्ण विश्व स्वर्णिम आभा से उज्जवल हो सकता है..... यही लिखना चाहा था, यह संप्रेषित हो पाया तो लेखनीं की सार्थकता है..

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2012 at 10:56am

मानवीय अन्वेषी विचारधारा, भले हम उसे मनोवैज्ञानिक सोच की संज्ञा दे दें, भौतिक स्वरूप के सूक्ष्म-तत्त्व को छूता है जो वस्तुतः चार अवयवधारी अंतःकरण है. डॉ.प्राची, आपकी इस रचना में भौतिक स्वरूप में दीखते उदार विन्यास का कारण बड़े ही सांकेतिक रूप से हुआ है. सूक्ष्म वैसे भी संकेतों में ही व्याख्यायित हो सकता है.

आशा और निराशा के बीच असंतुलन में दीखती मनोदशा को आखिरकार प्रकृति आशा की किरणों से आच्छादित करती है, नव-सृजन संभावनाओं को जीवित रखता है, रचनाकार की दृष्टि से इन विन्दुओं को देखना भला लगा.

एक अलग तरह की रचना के लिये आपको बहुत-बहुत बधाई, डॉक्टर साहिबा.  .. सादर ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 1, 2012 at 9:29am

इस रचना पर आपकी सराहना और प्रोत्साहन  हेतु हार्दिक  आभार आदरणीय अरविन्द जी 

Comment by Arvind Chaudhari on September 30, 2012 at 9:48pm

बेहद ख़ूबसूरत कविता...शब्दों का सही इस्तेमाल


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2012 at 3:12pm

आपके अनुमोदन  हेतु आभार शालिनी कौशिक जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 30, 2012 at 3:12pm

इस रचना के शब्द व भाव आपको पसंद आये , इस हेतु आपकी आभारी हूँ शिखा कौशिक जी.

कृपया ध्यान दे...

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