कई मोड़ हैं
मेरी हथेली पर
हांफते हुए
ख्वाब में डूबे
कुछ चश्में भी तो हैं
कांपते हुए
नीले पड़ाव
धुंध में फिसलते ...
सैलाब भी हैं
सुर्ख परियां
वजू करते हाथ
हुबाब भी हैं
कम भी नहीं
इतनी खामोशियां
जीने के लिए
बेदर्द जख्म
काफी है इतना ही
अभी के लिए
Comment
कम भी नहीं
इतनी खामोशियां
जीने के लिए
बढ़िया , सुन्दर शब्द झा साब
बहुत सुन्दर प्रयास किया है आपने
बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय
वाह........
अच्छा लगा
राजेश जी, आपने अच्छा प्रयास किया है. प्रयासरत रहें, धीरे-धीरे हाइकू की विधा स्पष्ट होती जायेगी. आप इस मंच पर प्रस्तुत हुए अन्य रचनाकारों के हाइकू भी अवश्य पढ़ें जिनपर व्यापक बहस हुई है. आदरणीय अम्बरीष भाई ने भी इसी तरफ़ इशारा किया है.
सधन्यवाद
बहुत बढ़िया हाइकु आ. राजेश जी बधाई.
हाइकू रचने के इस सद्प्रयास हेतु बधाई ! निकट भविष्य में आपका सतत अध्ययन इन्हें और भी पुष्ट बनायेगा !
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