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दो कुण्डलियाँ...सावन की.

हरी-हरी धरती भई.....

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बदरा बरसे शान से, बिजुरी चमके जोर.
हरी - हरी धरती भई,जित देखूं उत ओर.
जित देखूं उत ओर,हुआ है दृश्य मनोहर.
दिखा  रहें  हैं  मेघ , देखिये अपने तेवर.
कहता है अविनाश,झेलिये उनका नखरा.
भीगो  उनके संग,बरसते जब तक बदरा.
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अविनाश बागडे......
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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 9, 2012 at 12:00am

कुण्डलिया के लिये बधाई, अविनाश भाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 8, 2012 at 8:38pm

सावन की रिमझिम फुहारों जैसी सुन्दर मनभावन कुंडलियाँ हार्दिक बधाई अविनाश जी 

Comment by AVINASH S BAGDE on August 8, 2012 at 7:15pm
Comment by UMASHANKER MISHRA on August 7, 2012 at 10:04pm

हरी-हरी धरती भई....आपके इस मनमोहक प्राकृतिक चित्रण ने मन को मोह लिया

सुन्दर दृश्य आँखों के सामने आ रहे है

धरा पर खुशियाँ छाई....मन नाच उठा

बहुत सुन्दर है कुण्डलियाँ

 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 7, 2012 at 4:18pm

आदरणीय    अविनाश जी सुन्दर सन्देश काश   ऐसे   ही   प्रकति   हमें   गले मिलाये खुशियाँ   बरसाए मन भावन दृश्य भरी कुण्डलियाँ 

भ्रमर ५ 
Comment by Er. Ambarish Srivastava on August 7, 2012 at 3:48pm

//बदरा बरसे शान से, बिजुरी चमके जोर.

हरी - हरी धरती भई,जित देखूं उत ओर.//
आदरणीय अविनाश बागडे साहब ! दोनों कुंडलिया सुंदर बनी है जिसके लिए बहुत बहुत बधाई मित्र ....कृपया आदरेया सीमाजी के इशारे पर ध्यान दें !
Comment by seema agrawal on August 7, 2012 at 3:09pm

हरी - हरी धरती भई,जित देखूं उत ओर......वाह ....
पर कुछ बादल अब उधर भी जाने चाहिए जहां लोग वर्षा के लिए तरस रहे हैं 
अविनाश जी दूसरे छंद मे दोहे वाले भाग मे कुछ गडबड हो गयी 

कहता है अविनाश,युसुफ या रामखिलावन.

दोनों के हैं अधर,गा रहे मिलकर सावन.....बहुत बढ़िया भाव ... सच है प्र...

 

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