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1.
उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 
नयना दुख-दुख नीर बहाए,
है सौगात, नायाब करिश्मा,
ऐ सखि  साजन ? न सखी चश्मा l

2.
नज़र नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखि साजन? न सखी दर्पण l


3.
साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,
बातें करता मीठी गहरी ,
नटखट भी और बुद्धिजीवी ,
ऐ सखि साजन ? न सखी टीवी l
4
आते ही मुस्कान जगाए,
ख़्वाबों को ताबीर दिलाए ,
खुल्ली शौपिंग,कभी ज्वेलरी ,
ऐ सखि साजन ? न सखी सेलरी l

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2012 at 9:43am

डॉ. प्राची, आपकी कह-मुकरियों के लिये बहुत-बहुत बधाई.

उस बिन दुनिया ही धुंधलाए
अखियाँ दुःख-दुःख नीर बहाएं,
है सौगात, नायाब करिश्मा,
ऐ सखी साजन ? न सखी चश्मा l..

लगता नहीं कि चश्मा आपकी ज़िन्दग़ी में इस कद्र प्रवेश कर गया है. यदि वाकई नहीं तो इस बयान पर साधुवाद. बहुत खूब !

एक और बात प्राचीजी, दुःख और दुख में मात्र विसर्ग का अन्तर नहीं होता. दुःख संज्ञा है तो दुख क्रिया है. आपकी पंक्ति में दुखने के भाव को लिया गया है.  वैसे,  संज्ञा ’दुःख’ (संस्कृत) का हिन्दी प्रारूप ’दुख’ सामान्य हिन्दी में अब स्वीकार कर लिया गया है.

नज़र नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखी साजन? न सखी दर्पण l

वाह ! सुबह-शाम उसको ही अर्पण..  वाह-वाह !  दर्पण की अन्योन्याश्रयता को बहुत सही अभिव्यक्ति मिली है.

साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,
बातें करता मीठी गहरी ,
नटखट भी और बुद्धिजीवी ,
ऐ सखी साजन ? न सखी टीवी l

इन गुदगुदाती पंक्तियों के लिये हार्दिक साधुवाद, डॉ. प्राची.

आते ही मुस्कान जगाए,
ख़्वाबों को ताबीर दिलाए ,
खुल्ली शौपिंग,कभी ज्वेलरी ,
ऐ सखी साजन ? न सखी सेलरी l

आपकी संलग्नता, आपका सतत सद्-प्रयास और पद्य की नयी-नयी विधाओं को सीखने की प्रबल इच्छा इस मंच के पाठकों के लिये सुखद तो है ही, ख़ुराक़ भी है.

सादर

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 5, 2012 at 1:08am

नज़र नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखी साजन? न सखी दर्पण l

डॉ प्राची जी बहुत सुन्दर सब को आप ने अमर कर दिया इतना प्रेम दे के टी वी दर्पण सेलेरी चश्मा ..खूबसूरत अंदाज और सोच आप की 

.जय श्री राधे .....भ्रमर ५ 

 

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 5, 2012 at 12:12am

प्राची जी

        सादर,

नज़र नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखी साजन? न सखी दर्पण l

बहुत सुन्दर कह मुकरियाँ. बधाई स्वीकारें.

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