For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

न जाने भला या बुरा कर रहा है;
वो चिंगारियों को हवा कर रहा है; (१)

वो मग़रूर है किस कदर क्या बताएं?
हर इक बा-वफ़ा को ख़फ़ा कर रहा है; (२)

नहीं उसको कुछ भी पता माफ़ कर दो,
वो क्या कह रहा है, वो क्या कर रहा है; (३)

वो नादान है बेवजह बेवफ़ा की,
मुहब्बत में दिल को फ़ना कर रहा है; (४)

है जिसने भी देखा ये जलवा तेरा उफ़,
वो बस मरहबा-मरहबा कर रहा है; (५)

भुला दी हैं मैंने वो माज़ी की बातें,
तू अब बेवजह तज़किरा कर रहा है; (६)

भले आज़माइश कड़ी से कड़ी हो,

हमेशा बशर आज़मा कर रहा है; (७)

नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है; (८)

भले लाख टुकड़े हुए आईने के,
वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; (९)


***

Views: 707

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:48pm

आदरणीय लक्ष्मण जी,

मैं भी एक नौसिखिया ही हूँ! और मनुष्य वैसे भी आयुपर्यन्त सीखता-सिखाता ही रहता है! बहरहाल जहाँ तक उस शे'र की बात है तो वह वास्तव में देश की वर्तमान हुकूमत को केंद्रित कर के ही लिखा गया है! आपके क़ीमती वक़्त के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:46pm

भाई अरुन 'अनंत' जी,

आपकी 'कुछ ज़्यादा ही दाद' सहर्ष क़ुबूल है! :-) धन्यवाद,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:44pm

आदरणीया रेखा जी,

आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ!

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:44pm

आदरणीय सौरभ भईया,

प्रणाम सहित अपना हार्दिक धन्यवाद आपको देता हूँ! आप जैसे सजग-साहित्य मर्मज्ञ से प्रशंसा के चंद शब्द मिलना सदैव ही हर्ष का कारण बनता है! इस मंच पर आने के पश्चात आप लोगों के ही उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के कारण अपने अंदर इतना सुधार ला पाया हूँ! मतले का विचार पिछली सर्दी में चारकोल सुलगाते वक़्त यूँ ही आ गया था! :-)) अपने स्नेहाशीष से सिंचित करने हेतु कृतज्ञता ज्ञापित है! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:38pm

आदरणीय अभिनव भईया,

आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद स्वरुप है! एक काशीवासी को दूसरे काशीवासी से मिला स्नेह मेरे लिए बहुत ही अहमियत रखता है इसे सहेज कर रख रहा हूँ! सादर,

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on August 5, 2012 at 6:36pm

वीनस  जी,

आपकी प्रतिक्रिया पा कर सुखद अनुभूति हुई! मेरे ओबीओ पर आगमन के साथ ही आपने हर क़दम पर मुझे राह दिखाई है शायद यह ग़ज़ल उसी का परिणाम है! माँ शारदे की क्या कहूँ उनकी कृपा तो मुझ पर सदैव ही रही हैकिन्तु मैं अकिंचन उनके आशीर्वाद को पाकर भी अवहेलना कर बैठता हूँ मगर मेरे परिश्रम को देख कर शायद उनका ह्रदय पसीजा और उन्होंने वो 'कुछ' शे'र मुझसे लिखवा लिए! :-)) अगर आप उस दिन मेरे पीछे हाथ धो कर नहीं पड़े होते तो शायद आज ये दिन नहीं आया होता! ;-)

आपका हार्दिक आभार,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 5, 2012 at 5:28pm

संदीप जी , इस अश'आर पर खास तौर से दाद कबूल करें-

नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना

वो हर बात पर मशवरा कर रहा है |

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on August 5, 2012 at 4:03pm

न जाने भला या बुरा कर रहा है;
वो चिंगारियों को हवा कर रहा है;... अद्भुत... मतला जकड लेता है... साथ ही तमाम शेर गजब है...

बहुत ही उम्दा गजल हुई आदरणीय वाहिद भाई जी... सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 5, 2012 at 3:56pm
आदरणीय संदीप द्वेदी वाहिद कशिवाशी जी मुझ जैसे नासिखिए के लिए 
टिपण्णी कारन बेजा होगा | पर एक पाठक के रूप में मुझे ये पंक्तिया 
बहुत पसंद आई - 
नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,वो हर बात पर मशवरा कर रहा है; 
भले लाख टुकड़े हुए आईने के,वो सच तो हमेशा दिखा कर रहा है; 
 
मुझे तो इस में देश का वर्तमान हुकूमत का आइना झलक रहा है |
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2012 at 3:19pm

नहीं उसके बस में हुकूमत चलाना,
वो हर बात पर मशवरा कर रहा है....

संदीप भाई इस शेर के लिए कुछ ज्यादा ही दाद काबुल कीजिये 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service