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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- २२

मैं पैदा ही हुआ हूँ दर्द  को जीने के लिए

जैसे लहरें बनींहैं जाँकश सफीनेके लिए

 

मुझको क्या गिजा चाहिए जीने के लिए

तुम्हारा गम काफी है पूरे महीने के लिए  

 

कुछ तो चाहिए दिलको गम दवा या दारु

इकअदद आब काफी नहींहै पीने के लिए 

 

क्यूँ बढ़ालीहैं हमने अपनी सब ज़रुरीयात

बढ़ीहुई तंख्वाह चाहिए हर महीने के लिए  

 

मैं भटकता हुआ दरिया हूँ समंदर है कहाँ

कोई ठहराव चाहिए तामीरेनगीने के लिए

 

अपनी जवानीसे लबरेज़ हुआजाता था वो

न सही शराबपे शबाबथा आब्गीनेके लिए 

 

राज़ क्या गलतथी अपनी गुजारिश उनसे

दिलको चीरा है तो डोरभी दो सीनेके लिए

 

© राज़ नवादवी

१०.४३ रात्रिकाल, २६/०७/२०१२ 

 

जाँकश- जान लेने वाला; सफीना- नाँव; गिज़ा- भोजन; तामीरेनगीनना- नगीना की रचना के लिए; लबरेज़- लबालब भरा; आबगीना- शराब या गुलाबजल रखी जानी वाली शीशे की बहुत ही नाज़ुक बोतल; गुजारिश- प्रार्थना  

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Comment

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Comment by राज़ नवादवी on July 29, 2012 at 8:29pm

शुक्रिया राजेश जी, आपकी दाद सर आँखों पे. बड़ी हौसलाअफजाई हुई. और खुशी कि आपको ग़ज़ल पसंद आई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 29, 2012 at 4:11pm

राज़ क्या गलतथी अपनी गुजारिश उनसे

दिलको चीरा है तो डोरभी दो सीनेके लिए

 बेहतरीन ,लाजबाब ग़ज़ल इस अंतिम शेर के लिए तो विशेष दाद कबूल करें 

कृपया ध्यान दे...

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