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रिहा कर खूबसूरत दिखने की चाह की कैद से मुझे,

ए आईने मेरी सादगी को ज़मानत दे दे।  

...................

हम समता करना सीख गए सुख और दुख के हर रंग में,

मासूमियत अपनी हार गए पर जीवन की इस जंग में। 

...............................

बरसती हुई बूंदों ने आँख से आँसू भो छलका दिये,

बारिश का उसकी यादों से रिश्ता बड़ा पुराना हैं।

..................

मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,

जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम

..........................................................

 

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 27, 2012 at 2:53pm

मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,

जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम

वाह वसुधा जी, बेहतरीन शायरी, खास कर इस शेर में तो आपने कमाल कर दिया.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on July 27, 2012 at 2:32pm

मेरे खुदा ले चल ऐसे मंजर पर मेरे कदम,

जहां न कुछ पाने की खुशी हो, न कुछ खोने का गम

बहुत सुन्दर शायरी वसुधा जी ...काश ये सब के संग जो जाए 

भ्रमर ५
आंसू        भी     छलका दिए 

 

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