कोई भी हो नहीं देखी गई सरकार सदमे में।
मगर जनता है जो देखी गयी हर बार सदमे में॥
मुहब्बत करने वाले हैं ज़माने के निशाने पर,
है फतवा खाप पंचायत का सुनकर प्यार सदमे में॥
सुना मनरेगा में जबसे हुआ घपला करोडों का,
तभी से जी रहे हैं सैकड़ों परिवार सदमे में॥
है देखा हाल जब से देश ने राजा औ मंत्री का,
दबाकर दाँत में उंगली खड़े सरदार सदमे में॥
हुई नक़ली दवाएँ हैं बरामद शहर में जबसे,
दवाख़ाना, मसीहा, नर्स, औ बीमार सदमे में॥
अमीरे शहर से करके मुहब्बत क्या मिला हमको,
ग़रीबे-शहर की बेटी पड़ी लाचार सदमे में॥
ये दिल्ली है जो करती है सियासत के सभी ड्रामे,
टहलते देखे हैं मैंने कई किरदार सदमे में॥
किसानों को बचा पाये नहीं गर सूदखोरों से,
वज़ीरो ! डूब जाएंगे कई परिवार सदमे में॥
बचाकर कैसे रक्खें घर को इस मंहगाई में “सूरज”,
हमारी ज़िंदगी के हैं दरो-दीवार सदमे में॥
डॉ. सूर्या बाली “सूरज”
Comment
वाह डा.सूर्या बाला जी क्या खूब लिखा आज की सामाजिक परिस्थितियों को मद्दे नज़र रखते हुए अशआर ढालें हैं ग़ज़ल में बहुत उम्दा
टहलते देखे हैं मैंने कई किरदार सदमे में॥....... कोई जबाब नहीं इस शेर का
बचाकर कैसे रक्खें घर को इस मंहगाई में “सूरज”,
हमारी ज़िंदगी के हैं दरो-दीवार सदमे में॥........क्या कहने वाह
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