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देखो पुकार कर कहता है
भारत माँ का कण-कण, जन जन
हम बने विजय के अग्रदूत
भारत माँ के सच्चे सपूत...

हम बढ़ें अमरता बुला रही...
यश वैभव का पथ दिखा रही ...
यश-धर्म वहीँ है, विजय वहीँ..
जिस पल जीवन से मोह नहीं
आसक्ति अशक्त बनाती है ...
यश के पथ से भटकाती है ...
जो मरने से डर जाता है...
वह पहले ही मर जाता है ...

हम पहन चलें फिर विजयमाल,
रोली अक्षत से सजा भाल...
हम बनें विजय के अग्रदूत...
भारत माँ के सच्चे सपूत.....

स्मृतिचिन्हों के वैभव से
हैं सजी यहाँ की दीवारें..
इन दीवारों में चुने गए
जो देश धर्म पर थे वारे...
भारत माँ की जय बोल चढ़े
फाँसी पर अगणित वीर यहाँ
भारत की जय ही मोल,
भाल का बोलो है अन्यत्र कहाँ ?

इतिहास पुनः दोहराने को,
नव कीर्ति-ध्वजा फहराने को,
हम बने विजय के अग्रदूत..
भारत माँ के सच्चे सपूत...

पथ के कांटे या अंगारे
उत्साह बढ़ाते हैं सारे...
जो जितना स्वेद बहाते हैं,
वे उतनी ठंढक पाते हैं..
दुर्गम दुर्लक्ष्य ध्येय अपना
अपनी श्रद्धा का संबल है..
केशव माधव के शुभाशीष से
अपना पुष्ट आत्मबल है...

फिर चिंता की क्या बात
करें दानवता पर आघात
बने हम पुनः विजय के दूत
भरत हम माँ के सत्य सपूत....
डॉ.ब्रिजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 6, 2010 at 7:20pm
बहुत ही सुंदर गीत, चुन चुन कर शब्दों की मोती सजा दिये है, एक ताकत का संचार होता है पढ़ने के बाद, वाह वाह ,

कृपया ध्यान दे...

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