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मुकम्मल हो नहीं पाए

ख्वाब आँखों के कोई भी मुकम्मल हो नहीं पाए,
खाकर ठोकर यूँ गिरे फिर उठकर चल नहीं पाए,

खिलाफत कर नहीं पाए बंधे रिश्ते कुछ ऐसे थे,
सवालों के किसी मुद्दे का कोई हल नहीं पाए,

बड़े उलटे सीधे थे, गढ़े रिवाज तेरे शहर के,
लाख कोशिशों के बावजूद हम उनमे ढल नहीं पाए,

थरथराते होंठो ने जब, शिकायत दिल से की,
बहते अश्कों को हांथो से हम फिर मल नहीं  पाए,

लगी जब आग सीने में, तेरी यादों की वजह से,
हम जल गए लेकिन, किस्से जल नहीं पाए......

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Comment by अरुन 'अनन्त' on July 8, 2012 at 11:34am

हरीश भ्राताश्री सादर प्रणाम , अभिनन्दन बहुत -२ मेहरबानी

Comment by Harish Bhatt on July 7, 2012 at 11:08am

अरूण जी नमस्‍ते, क्‍या बात है, बहुत खूब, हार्दिक बधाई

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2012 at 5:31pm

धन्यवाद दीप्ति जी

Comment by deepti sharma on July 6, 2012 at 5:28pm

वाह  बहुत सुंदर...

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 6, 2012 at 5:25pm

बहुत -२ शुक्रिया रेखा जी अभिवादन

Comment by Rekha Joshi on July 6, 2012 at 5:10pm

बहुत खूब अरुण जी ,बधाई 

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