For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

”किसी और के नाम की मेंहदी”

किसी और के नाम की मेंहदी, तुम
अपने हाथो पे रचाने जा रही हो
मेंहदी के इन सूर्ख-लाल रंगो से,तुम
हाथ की लकीरों को छुपाने जा रही हो
उन लकीरों में लिखा था नाम मेरा, तुम
अपने हाथो से मेरा नाम मिटाने जा रही हो
वादा तो था सात-जन्मों तक साथ निभाने का, तुम
इसी जन्म मे साथ छुड़ाने जा रही हो
याद आयेंगे तुम्हे बहुत वो बिते हुए पल, तुम
जिनको हमेशा के लिए भुलाने जा रही हो
वादा करते है रहोगी इस दिल मे ताउम्र, तुम
जिस दिल को तोड़ने जा रही हो
होंगी तुम्हारी भी कुछ मजबुरीयाँ, तुम
वरना मुझे क्यों अकेले छोड़े जा रही हो
दुआ करता हूँ खूश रहना हमेशा, तुम
नयी दुनिया मे, जो बसाने जा रही हो
और ख्याल रखे तुम्हारा वो हमेशा, तुम
जिसे अपना बनाने जा रही हो।।।।।।।।।।

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Admin on April 26, 2010 at 8:29am
वाह राजू जी वाह , बहुत सुन्दर रचना आप लिखे है, दिल खुश हो गया, आप कि रचनाए दिन प्रतिदिन बेहतर हो रही है, ऐसे ही लिखते रहिए बहुत आगे जाइयेगा, अगले रचना का ईन्तजार रहेगा ।
Comment by Raju on April 25, 2010 at 4:05pm
THANK YOU .......
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on April 25, 2010 at 10:28am
bahut badhiya rachna baa raju bhai.......bhai raua ta ruk ruk ke dhakama karat bani.....jaise abhi kuch din shant rahni ha aur aaj ee achanak se ek dhamaka.....
bahut zordaar likhle bani raju bhai.......
aisehi likhat rahi....aur ek baat hum bhi kahab.......KISI AUR KE NAAM KI MEHNDI HAATHON ME NAA APNE BHARNA,THUKRA KE MOHABBAT MERI KABHI KISI AUR SE PYAR NAA KARNA

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 25, 2010 at 9:43am
मेंहदी के इन सूर्ख-लाल रंगो से,तुम
हाथ की लकीरों को छुपाने जा रही हो
उन लकीरों में लिखा था नाम मेरा, तुम
अपने हाथो से मेरा नाम मिटाने जा रही हो


बहुत ही खुबसुरत रचना है राजू जी, हम लोगो ने आपके भोजपुरी रचनाऒ को तो पहले ही देखा है पर आज आपकी हिन्दी रचना यह साबित कर दिया कि केवल आपको भोजपुरी साहित्य मे ही महारत हाशिल नही है बल्कि हिन्दी लेखन मे भी महारत हासिल है, बहत ही सुन्दर रचना है, आगे भी ऐसी रचनाऒ का इन्तजार रहेगा । धन्यबाद ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
19 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
6 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
10 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service