निर्मल मन मैला बदन , नन्हे नन्हे हाथ
रोटी का कैसे जतन,समझ ना पाए बात (1)
तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार
गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के आबार (2)
शून्य में देखते नयन , पूछ रहे है बात
प्रजा तंत्र के नाम पर,क्यूँ करते हो घात (3)
सीना क्यूँ फटता नहीं, भूखे को बिसराय
हलधर का अपमान कर,धान्य, जल में बहाय (4)
शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार
निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5)
रंक का चूल्हा न जले, ना लकड़ी ना तेल
मंत्रियों तक दौड रही ,सिलेंडरों की रेल (6)
दिन हैं भ्रष्टाचार के,सत्य रहा है काँप
मंहगाई की बीन पे, नाच रहे हैं साँप (7)
बिगड़ी सूरत देश की ,किस के जल से धोय
गंगा भी मैली करी, बचा उपाय न कोय (8)
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Comment
उमा शंकर मिश्र जी बहुत बहुत हार्दिक आभार
बहुत बढ़िया कटाक्ष -सच्चाई लिए हुवे है
ताज़ा घटना को भी बखूबी से चित्रित किया गया है
आम जन के मन में इस खोखली दोमुंही व्यवस्था के विरुद्ध जो विद्रोह है -
यह आपके दोहों में झलक रहे हैं
बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी
अविनाश बागडे जी बहुत- बहुत शुक्रिया
शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार
निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5)
बिगड़ी सूरत देश की ,किस के जल से धोय
गंगा भी मैली करी, बचा उपाय न कोय (8)
nice dohe Rajesh kumari mam...
अलबेला खत्री जी इतना सुन्दर विश्लेषण हेतु हार्दिक आभार
अरुण श्री वास्तव जी हार्दिक आभार आपका और दिली शुक्रिया त्रुटी निवारण कराने के लिए
जगदानंद झा जी हार्दिक आभार आपका
साधु साधु !
क्या कहने.........
वाह !
शासन की सौगात हो, या किस्मत की हार
निर्धन को तो झेलनी, ये जीवन की मार (5)
रंक का चूल्हा न जले, ना लकड़ी ना तेल
मंत्रियों तक दौड रही ,सिलेंडरों की रेल (6)
दिन हैं भ्रष्टाचार के,सत्य रहा है काँप
मंहगाई की धुन पे, नाच रहे हैं साँप (7)
बिगड़ी सूरत देश की ,किस के जल से धोय
गंगा भी मैली करी, उपाय बचा न कोय (8)
___बहुत खूब दोहावली
___बहुत खूब कटाक्ष
___________अभिनन्दन आपका राजेश कुमारी जी !
तरसे एक -एक कौर को ,भूखे कई हजार
गोदामों में सड़ रहे, गेहूं के आबार
एक समसामयिक विषय पर कलम चली आपकी और क्या खूब चली ! वाह !
(क्षमा सहित निवेदन है कि मात्राएँ एक बार फिर से गिन लें )
सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई
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