आग उगलते सूरज का रथ
दौड़ रहा था
अनवरत, अन्तरिक्ष पर
पीछे जन्म लेते
धूल के गुबार ने ढक
दिए सब वारि के सोते
कुम्भला गए दम घोंटू
गर्द में कोमल पौधों के पर
चिपक गए परिधान बदन से
हाँफते हुए ,पसीनों से लथपथ
उसके अश्वों के स्वेद सितारे
छितरा गए सागर की चुनरी पर
मिल गए खारे सागर की बूंदों से
जबरदस्त उबाल उठा
सागर के अंतर में
प्यासी धरा की आहें
कर बैठी आह्वान
मंथन से मुक्त होकर
उड़ चला वो वाष्पित आँचल
सुदूर गगन में
मेघ श्रंखला को ढकने
खोल दिए पट अभ्र्पारों ने
चुका दिया धरा का ऋण
खुल के बरसे मूसलाधार |
Comment
उमा शंकर मिश्र जी इतनी सुन्दर समीक्षात्मक टिपण्णी हेतु हार्दिक आभार
क्या बात है आदरणीय राजेश कुमारी जी आधुनिक कविता ही कहेंगे वर्तमान में यह काव्य की धार प्रगति शील विचारधारा वादी है
बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है आपने ..हमारी कल्पना को सूरज के रथ पर बैठा कर निचे पृथ्वी की और झांकते हुवे हमने वर्षा की
अद्भुत बूंदों को देखा समुद्र से वाष्पित होते जल बूंदों के वाष्पन को देखा प्यास से कराहती धरती को देखा प्यासी धरती के प्यास को बुझाते देखा और धरती को झूमते खुश होते देखा ..अद्भुत चित्रण बधाई हो ...
डा .सूर्या बाली जी आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को बल मिला हार्दिक आभार आपका |
अरुण कुमार निगम आपके इस उन्मुक्त ह्रदय से तारीफ़ सुनकर मेरी लेखनी का उत्साह वर्धन हुआ आपको बहुत -बहुत हार्दिक आभार
राजेश कुमारी जी सादर नमस्कार ! सुंदर कविता ने मन मोह लिया। बहुत ही साहित्यिक और उम्दा रचना। बधाई स्वीकार करें !!
अद्भुत, अद्भुत, अद्भुत
ग्रीष्म और वर्षा को एक ही कैनवास पर इस तरह उतरा हुआ पहले कभी नहीं देखा. अद्भुत कल्पना की उड़ान है. धूल के गुबारों में जल स्त्रोतों का ढँकना, कोमल पौधों का कुम्हलाना, अश्वों के स्वेद सितारों का सागर की चुनरी पर लहरा जाना, वाष्पित आँचल का उड़ जाना और फिर मूसलाधार बारिश, वाह ! तन-मन भीग गया. बेहतरीन कल्पना के लिये बधाई स्वीकार करें.
अगले जनम में अगर मैं घोड़ा बना तो खिला देना ...इस जनम में तो चांस नहीं ...हा हा हा
अलबेला जी आपको हम भी चना मसाला खिला कर छोड़ेंगे महिलाएं अपनी जिद भी मनवा लेती हैं
प्रदीप कुमार कुशवाह जी आपका हार्दिक अभिनन्दन
कविता किसी भी अंत की हो
भावों से सजी सामयिक संत सी हो
पड़े रह जाओगे विधा के चक्कर में
चूर हो जाओगे इसी टक्कर में
नारा लगाते हो जग में हो भाई चारा
फिर क्यों नफरत का भोग लगाते हो.
हिंदी हैं हम वतन हैं
प्यारा हिन्दुस्तान हमारा
जरूरत है पानी की भिगो दो भारत सारा
मरे न कोई भूखा दिखे सब हरियारा
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