For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आग उगलते सूरज का रथ
दौड़ रहा था
अनवरत, अन्तरिक्ष पर
पीछे जन्म लेते
धूल के गुबार ने ढक
दिए सब वारि के सोते
कुम्भला गए दम घोंटू
गर्द में कोमल पौधों के पर
चिपक गए परिधान बदन से
हाँफते हुए ,पसीनों से लथपथ
उसके अश्वों के स्वेद सितारे
छितरा गए सागर की चुनरी पर
मिल गए खारे सागर की बूंदों से
जबरदस्त उबाल उठा
सागर के अंतर में
प्यासी धरा की आहें
कर बैठी आह्वान
मंथन से मुक्त होकर
उड़ चला वो वाष्पित आँचल
सुदूर गगन में
मेघ श्रंखला को ढकने
खोल दिए पट अभ्र्पारों ने
चुका दिया धरा का ऋण
खुल के बरसे मूसलाधार |

Views: 639

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 28, 2012 at 8:42am

उमा शंकर मिश्र जी इतनी सुन्दर समीक्षात्मक टिपण्णी हेतु हार्दिक आभार 

Comment by UMASHANKER MISHRA on June 28, 2012 at 12:11am

क्या बात है  आदरणीय राजेश कुमारी जी आधुनिक कविता ही कहेंगे वर्तमान में यह काव्य की धार प्रगति शील विचारधारा  वादी है

बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है आपने ..हमारी कल्पना को सूरज के रथ पर बैठा कर निचे पृथ्वी की और झांकते हुवे हमने वर्षा की

अद्भुत बूंदों को देखा समुद्र से वाष्पित होते जल बूंदों के वाष्पन को देखा प्यास से कराहती धरती को देखा प्यासी धरती के प्यास को बुझाते देखा और धरती को झूमते खुश होते देखा ..अद्भुत चित्रण बधाई हो ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 27, 2012 at 8:50am

डा .सूर्या बाली जी आपकी प्रतिक्रिया से मेरी लेखनी को बल मिला हार्दिक आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 27, 2012 at 8:48am

अरुण कुमार निगम आपके इस उन्मुक्त ह्रदय से तारीफ़ सुनकर मेरी लेखनी का उत्साह वर्धन हुआ आपको बहुत -बहुत हार्दिक आभार 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 27, 2012 at 1:43am

राजेश कुमारी जी सादर नमस्कार ! सुंदर कविता ने मन मोह लिया। बहुत ही साहित्यिक और उम्दा रचना। बधाई स्वीकार करें !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on June 26, 2012 at 10:52pm

अद्भुत, अद्भुत, अद्भुत

ग्रीष्म और वर्षा को एक ही कैनवास पर इस तरह उतरा हुआ पहले कभी नहीं देखा. अद्भुत कल्पना की उड़ान है. धूल के गुबारों में जल स्त्रोतों का ढँकना, कोमल पौधों का कुम्हलाना, अश्वों के स्वेद सितारों का सागर की चुनरी पर लहरा जाना, वाष्पित आँचल का उड़ जाना और फिर मूसलाधार बारिश, वाह ! तन-मन भीग गया. बेहतरीन कल्पना के लिये बधाई स्वीकार करें.

Comment by Albela Khatri on June 26, 2012 at 10:46pm

अगले जनम में अगर मैं  घोड़ा बना तो खिला देना ...इस जनम में तो चांस नहीं ...हा हा हा


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 26, 2012 at 10:40pm

अलबेला जी आपको हम भी चना मसाला खिला कर छोड़ेंगे महिलाएं अपनी जिद भी मनवा लेती हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 26, 2012 at 10:38pm

प्रदीप कुमार कुशवाह जी आपका हार्दिक अभिनन्दन 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 26, 2012 at 10:31pm

कविता किसी भी अंत की हो 

भावों से सजी सामयिक संत सी हो 

पड़े रह जाओगे विधा के चक्कर में 

चूर हो जाओगे इसी टक्कर में 

नारा  लगाते हो जग में हो भाई चारा 

फिर क्यों नफरत का भोग लगाते हो. 

हिंदी हैं हम वतन हैं 

प्यारा हिन्दुस्तान हमारा 

जरूरत है पानी की भिगो दो भारत सारा 

मरे न कोई भूखा दिखे सब हरियारा 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
5 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
19 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service